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अमरसेणचरिउ जिणधम्महं विणु न वि सक्क सुक्खु । जिणधम्महं विणु न वि होइ मुक्खु ॥१८ इउ परमक्खर इउ परम-मंति । मिच्छत्त-वयणु मन पडिसि भंति ॥१९॥
घत्ता मिच्छत्तु विच्छंडहि जीव तुहुँ, जिम तुट्टइ संसारु । मणुय सग्गि सुह पाइ करि, पावहि मोक्ख-दुवारु ॥१-१९॥
[१-२०] इउ चिति वि विण्णि वि भाय तहिं । हम णिक्कमिय जिणधम्म-रहि ॥१॥ इह विवहारी धणु इत्थु लोइ । जो दिणि-दिणि मुणिवर-दाणु देइ ॥२॥ जिणु-अंचइ वसुविह-दव्व-लेइ । जण-पोसइ सत्तू-कार-देइ ॥३॥ साहम्मियवच्छलु करइ सोइ । सहसत्तुदयालउ-हियइ होइ ॥४॥ अरहंतुच्छंहि गउ णमइ कासु । जिणवर-वय-धारिय-तिण्ह दासु ॥५॥ हम पुण्णहीण जिणधम्म-चत । वहु पावपंक खुब्भिय णिरुत्त ॥६॥ संसार-भवण्णव-पडिउ जीउ । णीसरइ ण विणु जिणधम्म-कील ॥७॥ इउ चिति वि जिणवर-धम्म-नत्त । अच्छहि सुहज्झाणे लोणचित्त ॥८॥ णउ दूहहि सुत्तुह कहव तहिं । कोरंति केर विवहारियहि ॥९॥ अण्णहि दिणि चितउ साह तहि । ए विणि भव्व जिणभत्त-मणि ॥१०॥ किज्जइंउवाउणिच्छरहि खणि । किय कम्म असुह कप्पेहि रउ । जि संपज्जइ इणि सुरहपउ ।।१२।। अण्णहि दिणि चिति वि चेयालई । सेट्ठि लेवि गउ भाय वि हालइ ।।१३।। पणविउ विस्सकित्ति मुणिसारउ । काम-कुरुह कप्पणह कुठारउ ॥१४॥ जो भन्वहं भव-उवहि उतारउ । सायवाय जो वाणि वियारउ ॥१५॥ जो धमत्थ-शाण-मउणेहि थक्कु । सावयहं धम्मु ईरहि णिसंकु ॥१६॥
॥११॥
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