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________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान ५९ आचार्य जिनदत्तसूरिजी के परम भक्त किसी एक देव ने एक समय महाविदेह में विराजित वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी से प्रश्न पूछा कि है प्रभो ! जिनदत्तसूरिजी महाराज मोक्ष कब जायेगें ? उत्तर में प्रभु ने कहा : ५१ भणियं तित्थयरेहिं, महाविदेहे भवंमि तयंमि । तुम्हाणं तो गुरुणो, मुक्खे सीग्घं गमिस्सति ॥ १ ॥ टक्कलयंमि विमाणे, संपइ सोहम्मकप्पमज्झमि । चउपलिओपम- आउ, देवो जावो महडिओ ॥ २ ॥ ( तुम्हारे गुरु जिनदत्तसूरि सौधर्म देवलोक के टक्कल नामक विमान में चार पल्योपम की आयुष्य वाले महर्द्धिक देव हुए है। वहाँ से च्यवकर महाविदेह में अवतरित होकर शीघ्र ( एकावतारी होकर) मोक्ष में जायेगें 1 ) यह बात उसने भरत क्षेत्र में आकर सुनाई। इससे भव्यात्माओं के हृदय आनन्दित हो गये । सूरिजी के अतिशय प्रताप से अजमेर में जहाँ अग्निसंस्कार किया गया वहां पहनने के वस्त्र, चद्दर, चोलपट्टा तथा मुँहपती अग्नि में जली नहीं। आज भी ये सभी वस्त्र जैसलमेर स्थित " खरतरगच्छाचार्य जिनभद्रसूरि ज्ञानभंडार" में दर्शनीय रूप में विद्यमान है । आज तक समाज में प्रतिष्ठा : गुरुदेव का जीवन साधना के तेज से देदीप्यमान हो रहा था। वे चमत्कार करना नहीं चाहते थे, फिर भी उनकी साधना स्वतः वातावरण में व्याप्त होकर चमत्कारों में परिवर्तित होती जा रही थी। आपका समस्त जीवन चमत्कार पूर्ण था । आप अपना अधिक समय साधना में व्यतीत करते थे। इसी बीच में कई चमत्कार हुए। आपका प्रत्येक चमत्कार जिनशासन की उन्नति को लक्ष्य में रखकर ही था । विविध ग्रंथों में गुरुदेव के निम्न चमत्कार उल्लिखित हैं इन दोनों गाथाओं को निम्न पुस्तकों में देखे : (क) (ग) (घ) श्री जिनदत्तसूरि चरित्र - प. नेमिचंदयति पृष्ट १६-१७ श्री जिनदत्त चरित्र - रा. शेरसिंहजी गौडवंशी पृष्ठ ११२ श्री जिनदत्तसूरिचरित उत्तरार्द्धम् उपा. जयसागरगणि पृष्ठ ४०३ दादासाहेब की बड़ी पूजा में कर्ता रामऋद्धिसार भी फरमाते हैं किएक अवतारी कारज सारी मुक्तिनगर में जावे रे। "आरहसौ इग्योतर दत्तसूरि, अजमेर अनसन ठावे ।' उपज्या सौधर्मा देवलोके सीमंधर फरमावे ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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