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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान जैनत्व विस्तार के लिए आचार्य जिनदत्तसूरि युग-युग तक धर्म संघ के आदर्श बने रहेंगे। जिनदत्तसूरिजी का युग खरतरगच्छ के लिए स्वर्ण-युग सिद्ध हुआ था। २ आपने खरतरगच्छ की सर्वाधिक संवृद्धि की। जन्म और दीक्षा :-- जगत में जब-जब धर्म की कोई विशेष हानि होने लगती है, तब-तब उसकी रक्षा करने के लिए अवश्य ही किसी महाज्योति-युगप्रधान का अवतार होता है। इस प्राकृतिक नियमानुसार जब जैन धर्म में विशेष क्षीणता पहुँचने लगी, परस्पर साम्प्रदायिक झगड़ों की जड़ जमने लगी, विपक्षियों की ओर से अनेक प्रकार के प्रहार होने लगे और जैनों का आत्म संयम शिथिल होने लगा तब समाज कोई ऐसे व्यक्ति की अपेक्षा कर रहा था जो कि अपने सामर्थ्य द्वारा जैन धर्म पर घिरे हुए इस विपत्तिरूप बादल का संहार करें। तब जन्म जन्मान्तरों के संचित पुण्य बल से किसी उर्ध्वतम देवलोक में सुरेन्द्र सा जीवन व्यतीत करती हुई, एक दिव्यात्मा परोपकारार्थ धरती पर आने के लिए प्रस्तुत आचार्य जिनदत्तसूरिजी का जन्म गुजरात में अहमदाबाद जिले के अहमदाबाद से ३८ कलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में स्थित प्राचीन सुप्रसिद्ध एवं समृद्धिशाली नगर धवलक्कपुर (धोलका) में वि.सं.११३२ में हुआ। इनके पिता हुंबड़ वंशीय जैन थे। पिता का नाम वाछिगशाह और माता का नाम बाहड़देवी था। ४ इस महान् विभूति द्वारा धोलका नगर ही नहीं सारा गुजरात एवं भारत कृतकृत्य हो गया । पुत्रजन्म के उपलक्ष्य में मनाये जा रहे जन्मोत्सव से सारा नगर प्रमुदित हो ऊठा। २. खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास-महो. चन्द्रप्रभसागर-१७१ खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह-२, जिनविजयजी पृ.२४. पट्टावली में "धंधुका लिखा है एवं प्रामाणिक ग्रंथ गणधर सार्द्धशतक बृहवृत्ति के अनुसार धोलका ठीक है। खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली-जिनविजयमुनि पैरे. २७ पृष्ठ १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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