SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ m २२ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान पुद्गल षट्त्रिंशिका आराधना प्रकरण आलोयणा विधि प्रकरण स्वधर्मी वात्सल्य प्रकरण जयतिहुअण स्तोत्र पार्श्व-वस्तु स्तव (देवदुस्थिय) स्तंभन पार्श्व स्तव पार्श्व-विज्ञप्तिका (सुरन्नर-किन्नर) विज्ञप्तिका (जैसलमेर भण्डार) (पत्र २६) षट् स्थान भाष्य १७३ वीर स्तोत्र षोडशक टीका (पत्र-३७) महादण्डक तिथि-पयन्ना महावीर चरित (अपभ्रंश) उपधान-विधि पंचाशक प्रकरण आचार्य अभयदेव के महत्त्व को व्यक्त करते हुए द्रोणाचार्य कहते हैं : आचार्याः प्रतिसद्य सन्ति महिमा येषामपि प्राकृतै`तु नाऽध्यवसीयते सुचरितैस्तेषां पवित्रं जगत् । एकेनाऽपि गुणेन किन्तु जगति प्रज्ञाधनाः साम्प्रतं, यो धत्तेऽभयदेवसूरिसमतां सो ऽस्माकमावेद्यताम् ।। (युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, पृ.७) अभयदेवसूरिजी के गुरु जिनेश्वरसूरिजीने चैत्यवासियों के प्रति क्रान्ति मचाई थी। उसी क्रान्ति की चिनगारियों को जन-जन तक पहुँचाने का श्रेय जिनवल्लभसूरिजी को है। जिनवल्लभ सूरिजी अभयदेवसूरिजी के पट्ट पर आसीन हुए। १०८ आचार्य जिनवल्लभसूरि श्री अभयदेवसूरिजी के पट्टधर श्री जिनवल्लभसूरिजी थे। जिनवल्लभसूरिजी के व्यक्तित्व एवं जीवन के बारे में प्रभावकचरितकार एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy