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________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान सिरि-वीर - जिणेसर - समय रयण- - कोसोवएस-रयणाई । पुणपरिवज्जिएहं कयाइनो पन्न पुव्वाइ ॥ ५३ ॥ य-करणाहिं काउं नवंग - वित्तीउ तेहि दिन्नाई । अविवेय-रोरयालिंगियाण जंतूण जियलोए ॥ ५४ ॥ जइ केइ नाण-चरणेहिं सालिणो आगमेसिणो गुरुणो । संपइ पुणत गुणतुल्लयाए लोए न दीसंति ॥ ५५ ॥ भवकूव - निविड़ियाणं पाणिणं पाणिदाणदुल्लुलिया । सिरि-अभयदेव-गुरुणा विवरण- करणेण विक्खाया ॥ ५६ ॥ नाण- महुपाण- लालस-सुसीस - भसल - उल - संकुले विमले । तेसि महं तिक्कालं चरणंबुरुहे पणिवयामि ॥ ५७ ॥ जे समय पाढया समय- जाणया समय-भासया सम्मं । समए समएण समं मुणिऊण कुणंति किच्चा ॥ ५८ ॥ कालाइणं भवणं भवियाण विबोहणं भवविणासं । सिहं नाणं तं नाणगुणं पणिवयामि ॥ ५९ ॥ जे सपरपक्खविसयं देवगयं गुरुगयं च मिच्छत्तं । सुहगुरुसंपत्तीए मोत्तुं सम्मत्तमणुपत्ता ॥ ६० ॥ निस्संकियाइ गुणरयण - रोहणं दोसपणगपरिहीणं । निरुवम सुहतरुपीयं दंसणमिणमो पणिवयामि ॥ ६१ ॥ इरियासमियाईण पणगं मण- वयण-- कायगुत्ति-तियं । कुतर वसहिंदिय निसिज्ज कह पुव्व रमिएहिं ॥ ६२ ॥ पणिया परमियभोयण विभूसणादोसदूसियं जए थे। सिं सिवसिरिसरणं चरणं तिविहेण पणमामि ॥ ६३ ॥ बज्जाब्तरदुद्धरतवो विहाणुजयाय जिणधणियं । समयानुसार किरिया पवत्तिनिरया नमो तेसिं ॥ ६४ ॥ भत्तं पाणं वत्थं वसहिं च विसोहिऊण जयणाए । नियसत्तिं पयडंता विहरति सया नमो तेसिं ॥ ६५ ॥ इय जे पंचपयारं आयारं आयरंति आयरिया | उवज्झाया विजे के साहुणो तेसि पणमामि ॥ ६६ ॥ कय Jain Education International For Private & Personal Use Only २२५ www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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