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________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान १. सुगुरु गुण संथव सत्तरिया ( गणधर सप्ततिका*) गुण-मणि-रोहण - गिरिणो रिसहजिणंदस्स पढम-मुणि-वइणो II सिरिउसभसेण-गणहारिणोऽणहे पणिवयामि पए । अजियाइ जिणंदाणं जणियाणंदाण पणय- पाणीणं थुणिमो दीणमणोहं गणहारीणं गुरुगणोहं ॥ २ ॥ सिरि- वद्धमाण - वरनाण- चरण- दंसण मणीण जल- - निहिणो तिहुयण - पहुणो पsिहणिय - सत्तुणो सत्तमो सीसो ॥ ३ ॥ सुना जस्स पई- सन्निहं हसिय-हंसकर पसरं विप्फुरइ जणमणोगिहसंसय - तिमिर हरणंमि ॥ ४ ॥ जंति तिरिय - मणुय - दाणव- देविंद-नमंसियं महासत्तं तं नासिरि-निहाणं गोयम-गणहारिणं वंदे ॥ ५ ॥ जिण वद्धमाण- मुणिवइ- समप्पिया सेस - तित्थभरधरणे (?) पडिहव - पड़िवक्खेणं जयंमि धवलाइयं जेण ॥ ६ ॥ तं तिहुयण-पणय-पयारविंद - मुद्दाम-काम-करिसरहं । अणहं सुहम्म-सामिं पंचम - ठाणं ठियं वंदे ॥ ७ ॥ जस्सन्न तारुण्णे तरल-तारय-हत्थि (? अच्छि) पेच्छिरीहिं पि । अयंपि मणोरमणीहिं भावियं मुणिय भव-भावं ॥ ८ ॥ जहत-दिनावसाणे मिहिरो अत्थइरि सिहरमारुहइ । तस्सऽवसाण दिणंते नाण-दिनिंदो तहत्थमइ ॥ ९ ॥ तं जंबु नाम-नामं सुहम्म- गणहारिणो गुण समिहं । सीसं सुसीस-निलयं गणहर-पय- पालणं वंदे ॥ १० ॥ - Jain Education International * यह कृति जेसलमेर के बृहद् ज्ञानभंडारस्थ ताड़ पत्रीय प्रति से श्री हरिसागरसूरिजी की की हुई नकल के आधार से प्रकाशित की जाती है । इसकी एक अन्य प्रति थाहरूसाह के भंडार ( जेसलमेर) में भी प्राप्त हुई थी, जो कपड़े पर टिप्पणकार में थाहरू साह के लिए लिखी हुई थी । उपर्युक्त ताड़पत्रीय प्रति से इस प्रति का पाठ बहुत भिन्नता रखता है, कहीं कहीं तो गाथाएं भी सर्वथा भिन्न हैं, गाथाओं का क्रम भी अस्तव्यस्त है इसलिए हम प्राचीन ताडपत्रीय प्रति को ही प्रामाणिक समझते हुए उसीके पाठ को प्रकाशित करते हैं । २२१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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