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________________ १७८ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान (५) माता-पिता और गुरुओं की भक्ति पर विशेष बल दिया है। (६) जिनेश्वर की आज्ञानुसार ही जीवन यापन करने को कहा है। (७) गृहस्थ को श्रावक धर्म का उपदेश देकर सन्मार्ग की ओर उन्मुख किया (८) मनुष्य को विधिपूर्वक सत्कार्य करके जीवन यापन की शिक्षा दी है। तथा धर्म की महिमा का वर्णन अच्छी तरह से किया है। धर्म से ही इस लोक में समृद्धि एवं परलोक में सुख सम्भव है। (९) श्रावकों की सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा जिससे वंशबेलि (वैवाहिक धर्मवर्णन)बढ़ती है निरूपित किया है। अर्थात् समान धर्म में वैवाहिक कृत्यों की पुष्टि की है। प्रस्तुत रास के विषय वस्तु में संसार की नश्वरता सामाजिक विषमता और धार्मिक माहात्म्य आदि का स्पष्टीकरण अच्छी तरह से वर्णित है। भाषा प्रस्तुत “उपदेश रसायन रास'' में आचार्य श्री ने तत्कालीन प्रचलित लोकभोग्य अपभ्रंश भाषा का प्रयोग किया है। क्योंकि उपदेश तभी सच्चे अर्थों में उपदेश होता है, जब लोग उसे समझें। इस दृष्टि को ध्यान में रखकर सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्कालीन जन भाषा के प्रभाव के कारण तत्सम एवं देश्य शब्दों का प्रयोग बहुलता से किया गया है । भाषा में हकार, णकार एवं हस्व वर्गों के प्रयोग की बहलता दिखाई पड़ती है। छन्द इस रास में आदि से लेकर अन्त तक पद्धडिया (पञ्झटिका) छन्द का प्रयोग किया गया है। इस छन्द में ४+४+४+४=१६ मात्राएँ होती है। रस रस की दृष्टि से विचार करने पर कहा जा सकता है कि जैन रास साहित्य में प्राय: सभी रसों का प्रयोग प्राप्त होता है। किन्तु जैनाचार्य ने “शान्तरस' को रसराज पद पर स्थापित किया है। मानव अनेक प्रतिकूल अनुकूल परिस्थितियों में गुजरता है। भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करने के पश्चात् भी वह चाहता है “शान्ति' । काम, क्रोध, भय, मोहादि संकीर्ण मार्ग से गुजरते हुए उसका लक्ष्य विस्तृत राजमार्ग शान्त' ही होता हैं । जैनाचार्य शान्ति के पथप्रदर्शक रहे हैं। उनकी रचनाओं में अनेक रसों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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