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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान १६३ अगरचन्दजी नाहटा के अनुसार-संवत् १३८६ और १३८४ में सिन्ध प्रान्त में श्री ‘जिनकुशलसूरिजी' के पदार्पण के समय तथा १३९० में श्री जिनकुशलसूरि के पट्ट पर श्री पद्मसूरि के पट्टाभिषेक के समय तालारास करने व मंगलगीत गाये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। रास सम्बन्धी उपलब्ध साहित्य में जैन साहित्य का मुख्य स्थान है। इस साहित्य के रवना काल को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि-दसवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक सैकडों जैन रासों की रचना हई। १८ ___“मुकुट सप्तमी'' एवं संधि-बन्ध “माणिक्य-प्रस्तारिका” नामक रासों के अतिरिक्त प्राचीन रासों में “अम्बिका देवी रास' नामक रास का दसवीं शताब्दी में उल्लेख मिलता है। १९ ___'उपदेश रसायन रास' के बाद अनेक जैन रासों का वर्णन मिलता है । समग्र विवेचन से स्पष्ट होता है कि-रासक, रास एक प्रकार का लोकनृत्य था। इस नृत्य के मूल में मानव की उत्सवप्रियता आनन्द आदि भावों की अभिव्यक्ति होती है । रासक का उद्भव लोकधर्मी तत्त्वों से हुआ है। रास को नृत्य और नाटक दो रूपों में प्रयुक्त किया गया है। अनः रास को जैनाचार्यों ने धार्मिक उपदेशों में गेयकाव्य की स्थिति प्रदान की । इस प्रकार जैन तीर्थंकर, चक्रवर्ती, जैन धर्म में योगदान देनेवाले राजाओं का चरित, श्रावक श्राविकाओं के जीवन के आधार पर रास रचे गये हैं । जैन दर्शन में विरचित रासों में महामुनियों के चरित, गृहस्थों का धर्म, अणुव्रत, महाव्रत, अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय आदि के गुणों का वर्णन मिलता है। जैसा कि पहले भी लिखा जा चुका है बारहवीं शताब्दी के समय में देश की धार्मिक परिस्थिति दिन प्रतिदिन अवनति के गर्त में गिरती जा रही थी। चैत्यों एवं जिनालयों की प्रथा में काफी परिवर्तन आ चुका था। ऐसी स्थिति में प्रजा को प्रबुद्ध करना एवं उन्हें पुनः धर्म के प्रति जागरूक करना कोई आसान काम नहीं था। ऐसे समय में “दादा श्री जिनदत्तसूरिजी'' ने “उपदेश रसायन' नाम रास काव्य की रचना की। उपदेश रसायन शब्द का विश्लेषण करते हुए कहा जा सकता है कि १७. १८. १९. प्राचीन काव्यों की रूप परम्परा-श्री अगरचंदजी नाहटा, पृ.६७ रास और रासान्वयी काव्य-डा. दशरथ ओझा, पृ.४७ वही, पृ.४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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