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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान १२३ यहाँ ग्रंथकार उदुम्बर शब्द से पाँच उदुम्बर फलों को बताते हैं (उदुम्बर-गुलर के फल, बड़ के फल, प्लक्ष-पाकट पर्कटी, काकोदुम्बर- कठुमर, पिप्पल के फल), चार महा विगइ - (मद्य, मांस, मधु और नवनीत-मक्खन), हिम-(बर्फ), अफीम, ओले-(वर्षा में पड़ने वाले गड़े), सब प्रकार की मिट्टी, रात्रिभोजन, जिसमें बहुत बीज हो ऐसे फल (बेंगन आदि), जमीन में अनंतकायवाली वनस्पति (आलू, मूल, जमीकन्द आदि), संघाना (अचार), द्विदल (कच्चा दूध, दही, छाछ में डाले हुए बड़े आदि), बड़ फल, अज्ञात फल-, पिलु-पिचु आदि तुच्छफल, चलितरस (जिसका रस चलायमान हो गया है)ये बावीस छोड़ने योग्य अभक्ष्य वस्तु हैं। (१६-१७) श्राद्धदिन कृत्य सूत्र में कहा है कि-श्रावक भोजन में अनंतकाय बहुबीजवाली वस्तु, तुच्छ औषधि, विगय आदि का त्याग करें। ३९ ___ संसार में भक्ष्य-अभक्ष्य पदार्थों का सूक्ष्म ज्ञान जैन दर्शन में मिलता है। जैनदर्शन का सूक्ष्मातिसूक्ष्म ज्ञान आचार्यश्री चैत्यवंदन कुलक में बताते हैं, क्योंकि लोककल्याण की दृष्टि से जनसामान्य को दुःख मुक्त करने के लिये शुद्ध धर्म का मार्ग बताया है। __ अभक्ष्य अर्थात् अनंत जीवों की हिंसावाला अयोग्य भोजन, शरीर, मन और आत्मा का अहित करनेवाला भोजन, दुष्ट वृत्तिओं को उत्पन्न करे ऐसा तामसिक भोजन, जो इस लोक और परलोक को बिगाड़नेवाला भोजन अभक्ष्य होता है। आचार्यश्रीने बाईस अभक्ष्य श्रावकको त्यागने योग्य बताये हैं, जो वास्तव में युक्तियुक्त है। किन-किन कारणों से भोजन पदार्थ को अभक्ष्य माना है, वह बताते हैं: ___ पाँच प्रकार उंबर आदि के फल अभक्ष्य हैं। इनमें राइ के दाने की तरह सूक्ष्म अनंत बीज होते हैं, जो जीवननिर्वाह में अनुपयोगी है, और रोगों को उत्पन्न करेनवाले 'प्रवचन सारोद्धार' के अनुसार- पाँच प्रकार के उदुम्बर में मच्छर के आकार जैसे जीव भरे रहते हैं। ४० ३८. अनंतकाय बत्तीस प्रकार के होते हैं। देखे-प्रवचन सारोद्धार-पच्चक्खानद्वार-४ गाथा- २३८ से २४२ तक, पृ.६९-७० श्राद्धदिन कृत्य सूत्र-जैन धर्मप्रचारक सभा, भावनगर, पृ.१११-११२. प्रवचन सारोद्धार-पच्चक्खान द्वार-पृष्ठ-७० ३९. ४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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