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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान रूपक अलंकार : तं तिहुयणापणयपयारविदमुद्दामकामकरिसरहं ।। ७ पदारविन्द- काम करिशरभम्कमलरूपी चरण-कामदेवरूपी हस्ती यहाँ पर सुधर्मा स्वामी के चरणों को कमलरूपी और कामदेवरूपी हस्ती में रूपक अलंकार है। लीलाइ जेण हणिओ सरहेण व मयणमयराओ। मदन मृगराजः- कामदेव रूपी सिंह यहाँ पर कामदेव को सिंह का रूपक बताया गया है अतः रूपक अलंकार है। संसारचारगाओ निम्विन्नेहिं पि भव्व जीवेहिं ।। ८६ ॥ संसार चारकेभ्यः- संसाररूपी बन्दीखाना में दुःखी हुए। यहाँ पर संसार को बन्दीखाना बताया गया है। अतएव रूपक अलंकार है। धणजणपवाहसरियाणुसोअपरिवत्तसंकडे पडिओ ॥ १२३ ।। धन जन प्रवाह सरिता= जनप्रवाह रूप नद- यहाँ पर लोगों के प्रवाह को नदी का रूपक बताया गया है । अतः रूपक अलंकार है। उत्प्रेक्षा अलंकारः कुंकुणविसए सोपारयम्मि सुगुरुवएसओ जेण ।। ३६ ।। मानो जिस सुगुरु के उपदेश से ही कोंकण देश के सोपारक नगर में अकाल होने पर भी कोई तकलीफ नहीं होगी। यहाँ पर सुगुरु उपदेश को ही सबकुछ अर्थात् अकाल निवारण का उपाय मान लिया गया है। अतएव यहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार है। सुगुरु समीवोवगओ तदुत्तसुत्तोवएसओ जो उ। पडिवन सव्वविरइ तत्तरुई तत्तविहियरई ।। ५३ ॥ सद्गुरु के पास जाकर; उनके दिये गये सिद्धान्त उपदेश से सर्व विरति को अंगीकार किये हुए तथा तत्वों में रुचि रखनेवाले और तत्व में ही रति किया हो ऐसे युगप्रधान। यहाँ पर उपरोक्त वर्णित सभी गुणों को युगप्रधान में दृढीभूत कर दिया गया है। अतएव उत्प्रेक्षा अलंकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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