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________________ २२५ २२५ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन चला सूर्य, अम्बर की चौटी छूनेपसर गया आभा का अंचल।' *** राजा बने फकीरः समय बड़ा बलवान है, राजा बने फकीर । नारायणं वन वन फिरे, भटके पाण्डव वीर ।। २ *** अणु अणु में उजियाला होना: जैसे सूर्योदय होते ही, तम की विभीषिका फट जाती। जैसे पुण्योदय होते ही, दुःखों की खाई फट जाती ॥ ऐसे ही जब विभु आयेगा, अणु अणुमें उजियाला होगा। वह वीरेश्वर विश्वास रुप, जीवन देने वाला होगा॥३ * ** जहरीली नागिनः जहरीली नागिन सी दासी, भरी क्रोध में पुंकारी। गोशाले को चली मारने, भूल गई सुध-बुध सारी। *** साधु का घर कहीं न होता रमता जैसे पानी जाँत-पाँत मजहब की काली गहरी रेख मिटानी -५ *** I a rin x "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, “तरुणावस्था", सोपान-३. पृ. ९२ “वीरायण" : कवि मित्रजी, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग-२, पृ.६० वही, पृ.६६ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सप्तम् सोपान पृ.२४४ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-३, पृ.७० s Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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