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________________ २२२ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन अब इहि चतुर निकायी देव, प्रभु निर्वाण जान सब भवे । अपने अपने वाहन साज, परिजन जुत आये सुरराज ॥ *** सब विभूति पूरब व्रत जान, गति नृत्य, उत्सव उर आन। अन्तिम कल्पाणक जिनराय, पावापुर पूजा करवाय॥ *** मङ्गल का मङ्गल अरुणोदय, विहँसा, खग लगे चहकने अब। खिल गये कम औं दिग दिगन्त, सौरभ से लगे महकने अब ॥ *** यो लगा कि जैसे गाते हो, प्रभु की गरिमा ही सर्व विहग। औ भक्ति विभोर सरोवर हो, बिखराते होवें गन्ध सुभग ॥ *** इस प्रकार प्रबंधो में कवियों ने भाषा की शक्ति, गुण, शब्दचित्र प्रस्तुत करके वातावरण को और भी अधिक हृदयस्पर्शी बनाया है। शब्द शक्ति भाषा को शक्ति प्रदान करती है उसकी भावगरिमा बढाती है । शब्दचित्र ऐसा वातावरण प्रस्तुत करते हैं कि हम विविध दृश्यों को निहारने का अनुभव करते हैं। or r “वर्धमान पुराण' : कवि नवलशाह, सोलह अधिकार, पद सं.२२७, पृ.२७५ वही, पद सं. २२८, पृ.२७५ “परमज्योति महावीर" कवि सुधेशजी, “निर्वाणोत्सव', सर्ग-२३, पृ.५९० वही, पृ.५९१ in Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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