SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१७ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन दुर्दान्त बना फिरता था, अपनी ताकात के मद में। अकड़ा अकड़ा था चलता अभिमान भरा वह हठमें। १ “ताकत" विदेशी शब्द है। महावीर के शब्दों में कविने सहनशीलता के बारे में उद्बोधन देते हुए लिखा है कि - जो फूलों की डाली नोचे, उसको फूल न बदबू देते। वो उनकी मुट्ठी में मसले, वे उसको भी खुशबु देते। इस पद में “बदबू' और खूशबू विदेशी शब्द का विषयानुसार सहज रुप से चित्रण हुआ है। युद्धो की ज्वाला धधक रही, मन मन में लपटें बहक रहीं। तोपों टेंकों को पता नहीं, सरतिाएँ कितनी दहक रही ॥३ *** धरती पर मनमानी की है कैसे कैसे शेतानों ने। ऋषियों मुनियों को कष्ट दिये, कैसे कैसे हेवानों ने ॥४ *** कवि ने तोपों, टेंको, शैतानों और हैवानों विदेशी आदि शब्दों द्वारा भावों के अनुकूल देश की स्थिति का सुंदर चित्रांकन किया है। नभ-पथ से होकर चली लिये जब बालक ज्यों दिव्य ज्योति हो नीलाम्बर में लक-दक ५ I or in n x "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-१, पृ.४३ वही, सोपान-४, पृ.१३३ “वीरायण" : कवि मित्रजी, "पुष्प प्रदीप", सर्ग-१, पृ.३६ वही, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग-२, पृ.४४ “तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.१४ s Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy