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________________ २०७ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन नगर-जनों को कुचल-कुचलकरचिथड़े उड़ा रहा था *** कविने चिथड़े उड़ाना शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु उस का चिथड़े उड़ाना अर्थ न होकर लक्षणा से उसका अर्थ तहस-नहस करना है। त्रिशलानन्दन के दर्शन को धरणेन्द्र चले देवेन्द्र चले सिद्धार्थ सुवनके वन्दन को, धरती अम्बर में दीप जले: दर्शन को जन सागर उमड़ा, अभिनन्दन को आलोक चले आँसू गीतों में बदल गये, जाने कब कबके पुण्य फले॥ *** कविने “धरती अम्बर में दीप जले" वाक्यका प्रयोग किया है, परन्तु वास्तवमें धरती अम्बरमें दीप जलते नहीं है, पर इसका लक्षणा से नक्षत्रोंका जगमगाना अर्थ होता है। तीसरी पंक्तिमें “जनसागर को उमड़ने" का कहा है किन्तु लक्षणा से जन रुपी सागर दर्शन के लिए उमड़ा अर्थ हुआ। यहाँ भी “आँसू के गीतों में बदलने' का कहा है परन्तु इसका लक्षणा से अर्थ भगवान के जन्म से आनन्दकी लहर छा जाना। पदके नखसे शीश-शिखा तक सब अवयव थे वशीभूत। एक चेतना का प्रवाह था, जोड़ रहा था पंचभूत ॥ ३ । *** उपर्युक्त प्रथम पंक्तिका लक्षणा से अर्थ निकलेगा पैर से शिखा तक के सब अवयव व्यवस्थित थे। ढंका कलश सोभाग्य चिन्ह है, द्म सरोवर यशकी खान। सागर का गर्जन बतलाहयुद्ध वीरकी यह पहचान । *** I airn x “श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, द्वितीय सोपान, पृ.८४ "वीरायण" : कवि मित्रजी, “जन्म ज्योति", सर्ग-४, पृ.९७ “भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “तपस्या", सर्ग-११, पृ.१२९ "श्रमण भगवान महावीर", कवि योधेयजी,"स्वप्नों का विश्लेषण"प्रथम सोपान, पृ.६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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