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________________ २०२ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन विपुलाचल में आगमन के समय का कवि ने काव्य में सजीव चित्रण किया हैविपुलाचल पहुँचा समवशरण षद् ऋतु प्रसून सब संग खिले । लद गये फलों से वृक्ष तथा, लतिकाओं के मृदु अङ्ग खिले 11 *** समवशरण में बैठे हुए सभी प्राणी वैमनस्य भाव को त्यागकर समता से बैठे हुए थे, यह भगवान के शरीर के शुद्ध परमाणुओं का ही प्रभाव था प्रभु के शरणागत ये जीव, समतामय थे सारे जीव । जीव-जीव के बीच अनौखा, एक तार था बंधा जीव । २ *** १. २. ३. ४. आ जन्म विरोधी प्राणी भी, वन सहचर लगे विहरने थे Jain Education International मृग छौने सिंहों के बच्चोंके भी संग लगे विचरने थे | ३ *** प्रभु के शिर पर थे तीन छत्र जिन की भी सुषमा न्यारी थी । जो चन्द्र कान्ति सी शुभ्र और, भव्यो को अतिशय प्यारी थी । ४ *** “परमज्योतिमहावीर” : कवि सुधेशजी, बीसवाँ सर्ग, पृ. ५१६ 'श्रमण भगवान महावीर": कवि योधेयजी, सोपान - ७, पृ. २९२ "परमज्योतिमहावीर": कवि सुधेशजी, सर्ग - २०, पृ. ५१६ वही, पृ. ५२५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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