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________________ १९८ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन हाथी को परास्त करने का चित्रण : वह शुण्ड पकड़कर ही उस पर, चढने वे वीर कुमार लगे। यह देख दूर से ही दर्शक, करने उनकी जयकार लगे ॥१ दीक्षा के समय के जुलूस का चित्रणः हुए विराजित शिविका में प्रभु वर्धमान सिद्धार्थ कुमार। राज मार्ग पर शोभा यात्रा निकली होती जयजयकार। इन्द्र ध्वज था सबसे आगे, वाद्य वृन्द संगीत महान् अशोक-उपवन में आते ही उतरे शिविका से भगवान । २ *** वीर प्रभु के वन में आगमन से जड़ व चेतन प्रकृति में अनुकूल वातावरण हो जाना यह भगवान के प्रभाव का ही फल है। जब वे ध्यानावस्था में खड़े थे उस समय विषधर ने भगवान के पैर में डंक मारा तो उस खूनके बदलेमें दूध की धारा निकली, क्योंकि भगवान के एक एक परमाणुं स्नेह से युक्त थे। उसको हम भगवान का अतिशय या विशेषता ही कहेंगे। जहाँ डंक मारा विषधर ने, दूध वहाँ से निकला, प्रभु के अंगूठे से तत्क्षण, अमृत था वह निकला। उसका छींटा पड़ा नाग पर, वह सचेत हो जायेगा, उस की काया से पलभर में सारा विष वह निकला। *** पहुँचे ही थे निकट सर्प के हुआ भयावह आक्रमक। दंशाघात किया चरणों पर, दुग्धधार निसृत भूतक॥ चकित चण्ड कौशिक था, भारी लगा देखने प्रभु की ओर। उसकी दुःखमय पापावस्था से भगवान थे भाव विभोर ।' . *** “परमज्योतिमहावीर' : कवि सुधेशजी, सर्ग-९, पृ.२५५ "चरम तीर्थंकर महावीर" : आचार्य विद्याचन्द्रसूरि, पृ.२१, पद सं.८१ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-५, पृ.२११ “भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, सर्ग-११, पृ.१३५ I arrin x ४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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