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________________ १८० हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन उसकी कूर्च में पूरित था - १ मौलिक भाव अटूटा-सा ॥ *** कविने राजकुमार वर्धमान और राजकुमारी - यशोदा के दाम्पत्य जीवन का कल्पना की तूलिकासे रंग भरकर रति भाव का अलौकिक चित्रण अंकित किया हैदुल्हन का जो रूप निहारा दुल्हा ने हृदय उछलकर, जैसे मिलने को भागा । १. २. ३. ४. - एक घड़ी ऐसी थी आई जीवन में सागर नदिया में मिलने को था भागा। २ *** काया में काया के घुलने की वेला आलिंगत हों-जैसे धरती और गगन । एक अलौकिक सुख का पुलकित भाव प्रबलजिस में पुरुष और नारी हों प्रेम-मगन । २ *** रस में सरिता सागर में थी, सुख में दो तन थे एकरुप । तन के महलों मे लीन हुए, रानी में खोये हुए भूप ॥ रानी राजा के चरण चूम, बोलो प्रिय तुम जल में प्यासी । पर प्यास हमारी नीर बने, उपवन के फूल न हों बासी ॥ ४ प्रेम दो प्रकार का होता है - लौकिक और अलौकिक । राजकुमारी यशोदा का प्रेम लौकिक धरातल से उठकर अलौकिक धरातल पर प्रतिष्ठित हो गया था। इस में समूचा आत्म-समर्पण होता है और प्रेम के प्रत्यागमन की भावना नहीं रहती है । हिन्दीकवियों ने कवि सूरदास की भाँति श्रृंगाररस का अनोखा चित्रण काव्य में किया है । कवि द्वारा पत्नी यशोदा की विरह वेदना का करुणामय चित्रण देखिए । "" 'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, “विविध विचार", सोपान - ३, पृ. ९९ वही, "गृहस्थ में", सोपान - ३, पृ. १०५ वही, "विविध विचार", सोपान - ३, पृ. १०५ "वीरायण" : कवि मित्रजी, “जन्मज्योति”, सर्ग - ४, पृ. ८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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