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________________ १७४ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन उस दिव्य शक्ति का तेज प्रकट था, नर शिशु का तन अतुलित था। देख विमोहित सकल नारियाँ, आकर्षण अतुल अपरिमत था।' *** भगवान के जन्म के पश्चात् चारों और शान्ति का साम्राज्य फैल जाता है। प्रकृति में भी शांति का वातावरण छा जाता है। इन्द्र-इन्द्राणी, देवगण और जन-मानस में आनन्द का सागर उमड़ने लगता है - बज उठी देव दुन्दुभी हुआ जयनाद-गहन शंखध्वनि से आपूरित धरती और गगन स्वर्ग से वृष्टि थी पारिजात के पुष्पों की हो गई ध्यान मुद्रा विभंग ऋषि-मुनियों की *** कोई करता था नृत्य दौडता कोई मंगलवेला की बेलि किसीने बोई जा पहुँचे कुण्डलपुर में क्रम से सुरगण भर गया सुरों से राजमहल का आंगन *** अवतीर्ण हुई वह दिव्य ज्योति, जो युग के तम पर प्रकाश । घर घर में थे आह्लाद नये, घर घर में धन घर घर प्रकाश ।। वह प्रकट हुआ जो धरा बना, वह प्रकट हुआ जो गगन बना। वह आया जो ब्रह्माण्ड ईश, त्रिशला ने अमर सपूत जना॥' *** पड़े दुःख में जीव अनेक मिला कुछ उनको भी परित्राण। a rin x "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “दिव्य शक्ति अवतरण", सर्ग-३, पृ.३१ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.१३ वही, पृ.१४ “वीरायण' : कवि मित्रजी, “जन्मज्योति", सर्ग-४, पृ.९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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