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________________ ***** १७२ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन मिलकर मेरु पर्वत पर अभिषेक करना, बाल-लीला आदि का वर्णन सरल-सुबोध शैली में प्रकृति के माध्यम से किया है। जंगली प्राणियों द्वारा घोर उपसर्ग, केवल ज्ञान की प्राप्ति के समय पावापुरी में आगमन एवं निर्वाण आदि का प्रकृति के अनुकुल, भावानुकूल, विषयानुकूल सुंदर चित्रण किया है। ___ वास्तव में कविने प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण अंकित कर काव्य के सौंदर्य को बढाया है। प्रबन्धों में रस दर्शन काव्य में रस की महत्ताः ___ काव्य में रस की विशेष महत्ता है, उसका विशेष स्थान है। काव्य की आत्मा रसादि ही हैं। जहाँ रस है वहाँ काव्य है और जहाँ रस नहीं है वहाँ काव्य नहीं है। उसका मतलब यह न हो कि रस के आधिक्य से काव्य की कथावस्तु का प्रवाह ही विच्छिन्न हो जाए। काव्य और रस का अभिन्न संबंध है। मानव के मन में समय-समय पर उत्पन्न होनेवाले विकारों से रस की सिद्धि होती है। “रस्यन्ते अन्तरात्मनाऽनुभूयन्ते" इति रसाः अर्थात् अन्तरात्मा की अनुभूति को रस कहते हैं । कवियों ने महावीर प्रबन्धों में विषयनानुकूल, भावानुकूल रसों का अद्वितीय चित्रण प्रस्तुत किया है। शांतरस: कवियों ने साहित्य-शास्त्रियों की भाँति ही शम को शान्तरस का स्थायी भाव माना है। उन्होने एक मतसे, राग-द्वेषों से विमुख होकर वीतरागी पथ पर बढने को ही शान्ति कहा है। उसे प्राप्त करने को दो उपाय कविने काव्यों में बताये हैं-तत्वचिंतन और वीतरागियों की भक्ति। उन्होंने शान्त भाव की चार अवस्थाएँ स्वीकार की है। प्रथम अवस्था वह है जो मन की प्रवृत्ति, दुःख रुपात्मक संसार से हटकर आत्म शोधन की ओर मुड़ती है। यह व्यापक और महत्वपूर्ण दशा है। दूसरी अवस्था में उस प्रमाद का परिष्कार किया जाता है, जिसके कारण संसार के सुख-दुःख सताते हैं। तीसरी अवस्था वह है जब कि कषायवासनाओं का पूर्ण अभाव होने पर निर्मल आत्मा की अनुभूति होती हैं। चौथी अवस्था केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर पूर्ण आत्मानुभूति को कहते हैं। इनमें स्थिति “शम" भाव ही रसता को प्राप्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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