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________________ १६९ १६९ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन मुनिनाथ बढे पथ पर आगे, वन वन ने चरण वंदना की। सरिता सरिता ने पग धोये, पथ पथ ने चरण अर्चना की। वर्षाने आ अभिषेक किया, गूंजे मेघों के मधुर गीत । मोरों ने मनहर नृत्य किये, चरणों से करने लगे प्रीत ॥' *** जब भगवान का पावापुरी में शिष्यों सहित आगमन होता है उस समय का कविने प्रकृति का अलौकिक चित्रण खींचा है। खेतों की सुनहली फसल ऐसी दिखाई दे रही थी जैसे स्वर्णवालियाँ हो, उँचे उँचे तरुदल मानों नभ को स्पर्श कर रहे हों। तारे टिम टिम कर रहे थे। चाँदनी ऐसी दिख रही थी मानो धरती का गीत सुनाने नीचे उतर आई हो । सूर्योदय की किरणों की छटा अनोखी थी। एक विशाल सरोवर में पक्षी तपस्वी सा क्रीडा कर रहा था । बक ध्यान मग्न हो कर तपस्वी सा खड़ा था, मछलियाँ जल में उछल-कूद कर रही थी। पावापुरी का मोहक, रमणीय प्रकृति का चित्रण कवि ने काव्य में गुंथित किया है खेतों की फसल सुनहली बिखरा हो जैसे सोना आ निकट दूब को चरता कोई स्वर्णिम मृग छौना-२ *** तारे टिम टिम कर देते रातों को सहज विदाई धरती को गीत सुनाने चाँदनी उतर आई-३ पावापुरी में वीर भगवन्त के पदार्पण से जड़-चेतन आदि सभी प्राणियों में अलौकिक दिव्य भाव के दर्शन हुए। प्रकृति की शोभा मनोहर और आकर्षक दिखाई देने ar r २. ३. “तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, “दिव्यदर्शन", सर्ग-१०, पृ.२७६ वही, सर्ग-८, पृ.३४३ वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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