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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन १३७ किया और विवाह अस्वीकार कर दिया।' आगमिक व्याख्याओं में उपलब्ध विवाह के विविध रूपों का विवरण प्रस्तुत किया हैं। विवाह के विविध प्रकार : ____ महावीर स्वामी के पूर्व में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख आता है। (१) बाह्य विवाह :- जब पिता अपनी कन्या को वस्त्र व आभूषणों से सुसज्जित कर किसी योग्य वर को प्रदान करे, तो इस प्रकार के विवाह को बाह्य विवाह कहा जाता था। (२) प्राज्यापत्य विवाह :- जब वर और कन्या का विवाह-प्राज्यापत्य धर्म की वृद्धि (सन्तानोत्पत्ति)के लिए किया जाय, और पिता इसी उद्देश्य से किसी योग्य वर को अपनी कन्या प्रदान करे तो उसे “प्राज्यापत्य' विवाह कहते थे। (३) आर्ष विवाह : - इस में वर की ओर से कन्या को गौ आदि भेट में देनी हाती थी। वधू की प्राप्ति के लिए वर कन्या पक्ष को दक्षिणा देता था। (४) देवयज्ञ में ऋत्व क् का कर्म करते हुए जामाता को अलंकार आदि से विभूषित कन्या प्रदान करके जो विवाह किया जाता था, उसे "देव' कहते थे। (५) आसुर :- कन्या पक्ष को भरपूर धन देकर सन्तुष्ट कर कन्या प्राप्त करके जो विवाह होता था, वह "आसुर” कहलाता था। (६) गान्धर्व :- परस्पर स्वच्छन्द प्रेम के कारण वर और कन्या अपनी इच्छा से जो विवाह करते थे, उसे गान्धर्व कहते थे। (७) राक्षस :- कन्या का जबरदस्ती अपहरण कर जो विवाह होता था, वह राक्षस कहाता था। (८) पेशाच :- मद्य आदि के सेवन से मस्त हुई कन्या से विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लेने पर ऐसे विवाह को “पेशाच" कहते थे। इन आठ प्रकार के विवाहों में से पहले चार विवाह धर्मानुकूल माने जाते थे। पिछले चार विवाह आर्यमर्यादा के विरुद्ध थे। पर उनका भी उस युग में प्रचलन हो गया था। अतः उन्हें कानून की दृष्टि स्वीकार्य माना जाता था। उस समय क्षत्रियों में राक्षस विवाह का प्रचलन बहुत बढ़ गया था। महाभारत के अनेक स्थलों पर इन विविध प्रकार के विवाहों के गुण दोषों का विवेचन किया है। १. आवश्यक चूर्णि, भाग-१, पृ.१४२-१४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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