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________________ १३० हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन अर्थ सिर्फ सहन करना ही नहीं, किन्तु सहिष्णुता, उदारता और श्रम निष्ठा को महत्व देना है। सत्य की राह पर चलना होगा। अंत में सत्य की विजय होती है। कवि अभयजीने सत्य का विश्लेषण करते हुए काव्य के एक पद में लिखा है - सत्य मनुज की कडी है, इस पर वही खरा उतरे। जिसका हृदय खरा सोना हो, तपकर वही खरा उतरे ॥ *** प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चेतना जगेगी, राष्ट्रीय गौरव की अनुभूति होगी और राष्ट्र उनके गौरवशाली व्यक्तित्व से उनके चरित्र और आत्मबल से समृद्ध होगा तो फिर रामराज्य की कल्पना परियों की देश की कहानी नहीं, किन्तु इसी धरती का जीता जागता चित्र होगा, ऐसा मेरा दृढ विश्वास है। ***** महावीरकालीन युगीन परिस्थितियाँ राजनीतिक परिस्थितियाँ: राजनीतिक दृष्टि से भी, महाभारत-युद्ध के उपरान्त भारतीय राजनीति छिन्नभिन्न हो गई थी। राष्ट्रीय एकता का अभाव हो चुका था। उस समय एक नहीं, अनेक राजा थे और सभी अपने-अपने राज्य में पूर्ण स्वाधीन थे। फिर भी इतना अवश्य या कि जनता अपने नागरिक अधिकारों के संरक्षण में पूर्णतया जागरूक थी। राजा के अन्यायी या अत्याचारी होने पर उसे पदच्युत भी किया जाता था। शक्तिशाली राजा दूसरे निर्बल राज्य पर आक्रमण कर लूट-खसोट मचाता था। काशी कौशल, वैशाली, कपिलवस्तु आदि अनेक राज्यों में गणतन्त्रीय प्रणाली थी। अंग मगध, वत्स, सिंधु-सौवीर, अवंती आदि देशों में जहाँ राजतन्त्र था। कविने काव्य में तत्कालीन राजनीतिक स्थिति को उभारा है - प्रजातन्त्र में राजतन्त्र था, राजतन्त्र में क्रीडा। राजाओं की मनमानी थी, नाच रही थी व्रीड़ा । १. "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, "सत्य" चतुर्थसोपान, पृ.१३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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