SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन शासन का क्षेत्र स्थापित करना है, प्राचीनकाल में राजसूय आदि यज्ञों द्वारा ऐसे अखंड देश का राज्य प्राप्त कर चक्रवर्ती सार्वभौम व सम्राट पद को प्राप्त करने में समर्थ हुए थे। प्राचीन समय में भारत चाहे सदा एक शासन में न रहा हो, पर इस देशमें यह अनुभूति प्रबल रुप से विद्यमान थी, कि यह एक देश है, और इसमें जो धार्मिक साहित्यिक व सांस्कृतिक एकता है, उसे राजनीतिक क्षेत्र में भी अभिव्यक्त होना चाहिए । यही कारण है कि विविध राज्यों और राजवंशों की सत्ता के होते हुए भी इस देश के इतिहास को एक साथ प्रतिपादित किया जा सकता है। प्राचीन भारत का इतिहास लिखते हुए जहाँ हम उसके धर्म, सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, और सामाजिक संगठन के विकास का वृतान्त लिखते हैं, जो सारे भारत में समान रुप से विकसिक हुए, वहाँ साथ ही हम उस प्रयत्न का भी प्रदर्शन करते हैं, जो इस देश में राजनीतिक एकता की स्थापना के लिए निरन्तर जारी रहा। यही कारण है कि हम इसका इतिहास एक साथ लिखने में समर्थ होते हैं। देश दर्शन : (प्राकृतिक सौन्दर्य) हिन्दी साहित्य के सभी कवियों ने काव्यों के अन्तर्गत देशके सौंदर्य का सुन्दर चित्रण किया है। डॉ. छेलबिहारी गुप्त कृत 'तीर्थंकर महावीर' महाकाव्य में देश का प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव चित्रण प्रस्तुत है - शीस पर नगराज हेम किरीट चरण धोती सिन्धु जल की छींट गोदमें गंगा-यमुना अभिराम ब्रह्मपुत्रा नर्मदा छवि धाम।' *** प्राकृतिक दृष्टि से भारत की सीमायें अत्यन्त सुन्दर हैं। इसके उत्तरमें हिमालय की ऊँची और दुर्गम पर्वत श्रृंखलायें हैं। पूर्व, दक्षिण तथा पश्चिम में यह महासमुद्र द्वारा घिरा हुआ है। इसके उत्तर-पश्चिमी और उत्तर पूर्वी कोनों पर समुद्र नहीं है, पर उनकी सीमा निर्धारित करने के लिए हिमालय की पश्चिमी और पूर्वी पर्वत श्रृंखलायें दक्षिण की ओर मुड़ गई हैं, और समुद्र तट तक चली गई हैं। हिमालय की पश्चिमी पर्वतमाला दक्षिण पश्चिमी की ओर मुड़कर सफेद कोह, सुलेभान और किरथर की पहाडियों के रुप १. "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy