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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन आकाश द्रव्यः आकाश पदार्थ सर्वज्ञात है। समस्त दिशाओं का भी इसी में समावेश होता है । आकाश द्रव्य सभी द्रव्यों को स्थान देता हैं । यह अमूर्तिक एवं सर्वव्यापी है। जैनाचार्यों में इस आकाश को (१) लोकाकाश (२) अलोकाकाश ऐसे दो विभागों में विभाजित किया है। लोक सम्बन्धी आकाश-लोकाकाश और अलोकसंबंधी आकाशअलोकाकाश कहा है। पुदल द्रव्यः जैन दर्शन में स्थूल महास्थूल समस्त रुपी पदार्थों को पुद्गल की संज्ञा दी गई है। यो कहा जा सकता है कि हम जो देखत हैं, खाते हैं, आदि सभी पदार्थ, पुद्गल है। शास्त्रकारों ने पुद्गल को रुप, रस, गंध और स्पर्शवाला कहा है। कालः वस्तु के परिवर्तन में सहायक द्रव्य कहलाता है। परिवर्तन वस्तु का लक्षण है। परन्तु बाह्य निमित्त के बिना संभव नहीं काल द्रव्य की सहायता के बिना संसार का परिवर्तन संभव नहीं होता। वस्तु का रुप बदलना, नये का पुराना होना, युवा का वृद्ध होना, वर्तमानकाल का भूतकाल में परिवर्तन होना सभी परिवर्तन इस कालद्रव्य के कारण हैं। इस प्रकार कवियों ने महावीर प्रबन्धों में जैन दर्शन सम्बन्धी तात्विक विश्लेषण करके हमें भगवान महावीर के पथानुगामी बनने का उद्बोधन दिया हैं। *** प्रबंधो में राष्ट्रीयभावनाः राष्ट्रशब्द की व्याख्याः . ___ अनेक ग्रन्थों में भाषा, भूमि, जनसमुदाय आदि विभिन्न अर्थो में राष्ट्र शब्द का प्रयोग किया गया है। ___भारतीय और पाश्चात्य मान्यता के आधार पर राष्ट्र शब्द का अर्थ किसी भौगोलिक इकाई पर बसा हुआ समुदाय जिसकी अपनी सभ्यता तथा संस्कृति हो, अपनी भाषा, धर्म और परम्परा हो तथा जिसकी अपनी राजनीतिक एकता और कानून हों-वही राष्ट्र है । इन सबके मूल में एकत्व और अखण्डता की साधना का संकेत हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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