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________________ ११५ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन है अकथ्य पर नहीं कदाचित्, है वे नहीं भी उसका रुप। सप्तभंगीयुत स्याद्वाद का होता यह सैद्धांतिक रुप॥' *** अनेकान्त हित स्याद्वाद की भाषा का होता व्यवहार। सप्तभंगी नय कहलाता, वह, होते उसमें सात प्रकार ॥ स्यादास्ति स्यान्नास्ति और स्यादास्ति नास्ति स्यादवक्तव्य । स्यादस्ति अवक्तव्य तथा स्यान्नास्तिका भी अवक्तव्य ॥२ *** यही सप्तभंगी न्याय व्यक्ति को संघर्षों से मुक्ति दिलाने का काम करता है। इससे किसी का अनादर भी नहीं होता है। अतः सृष्टि में सभी सुख का अनुभव प्राप्त करते हैं। इस प्रकार समस्त विश्व के लोग उलझनों से दूर हटकर समन्वय का भाव उत्पन्न करेंगे। सप्ततत्व: तत्वों की मीमांसा करने से पूर्व तत्व शब्द को समझना चाहिए। सर्वार्थ सिद्धि में वस्तु के निज स्वरुप को ही तत्व कहा गया है। जिस वस्तु का जो स्वभाव है वही तत्व है। पंचाध्यायी पूर्वार्ध में इसी भाव को स्पष्ट करते हुए कहा है-तत्व का लक्षण सत है। अथवा सत ही तत्व है। वह स्वभाव से ही सिद्ध है, इसलिए वह अनादि निधन है, वह स्वसहाय है और निर्विकल्प है। तत्वार्थ के सन्दर्भ में यह स्पष्ट कहा गया है कि अर्थ माने जो जाना जाये। तत्वार्थ अर्थात् जो पदार्थ जिस रुप से स्थित है उसका उसी रुप में ग्रहण करना। तत्वार्थ सूत्र में उमास्वातिजी ने तत्वों पर श्रद्धा करने वाले को सम्यग्दृष्टि कहा है। प्राणी इन तत्वों को भली प्रकार से समझने और आचरण में लाने पर ही जन्म-मरण से छुटकारा पा सकता है। अंत में चारित्र रुप धारण करके ही मोक्ष पद को प्राप्त कर सकता है। दिगम्बर मतानुसार सात और श्वेतांबर अनुसार नव तत्व हैं। पुण्य और पाप को आश्रव के अन्तर्गत लिया है। पुण्य और पाप का आना ही आस्त्रव है। कवियों ने जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष तत्व का वर्णन इस प्रकार प्रस्तुत किया है - ___ “चरम तीर्थंकर महावीर" : श्रीमद् विजय विद्याचन्द्रसूरि, पृ.५८ "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, "तीर्थंकर चिंतन", सर्ग-२१, पृ.२२६ तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्- प्रथमोऽध्याय सूत्र-२. or sm Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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