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________________ ॥पञ्चमो विमर्शः॥ ३एए निंद्य स्थान एटले श्रा पांचमा विमर्शमां "त्रिष्वपि क्रूरमध्यस्थौ” (श्लो० १३), "नवेजन्मनि जन्मात्" (३१), "शनिस्त्रिकोणकेन्द्रस्थ" (३२), "रविः कुजोऽर्कजो राहुः" (३३), "तनुबन्धुसुतधून" ( ५३ ), इत्यादि श्लोकोमां कहेला ते ते दोषोनो श्रा अपवाद बे. "दृष्टः" एटले जोयेलो एम सामान्य रीते कडं , तोपण अहीं पुष्ट दृष्टि जाणवी. वळी जो ते क्रूर ग्रहने बुध, गुरु अने शुक्र साथे स्वानाविक अथवा तात्कालिक मैत्री होय तो दृष्टिथी अधिक विशेष श्रयो एम जाणवु. कें अने त्रिकोणमा रहेला एटलुं कर्तुं ने तेना उपलक्षणथी पोताना उच्च स्थानमा रहेला ए विगेरे वझे अत्यंत बलिष्ठ होय ते पण जाणवा. कह्यु बे के ___ "कूरा हवंति सोमा सोमा गुणं फलं पयति । ___ जश् पास किंदविन तिकोणपरिसंवि वि गुरू ॥ १॥" "जो केंजमा रहेलो अथवा त्रिकोणमा रहेलो गुरु क्रूर ग्रहोने जोतो होय तो ते क्रूर ग्रहो सौम्य अश् जाय , अने सौम्य ग्रहोने जोतो होय तोते बमणा शुन्न फळने थापे ." हवे शुल ग्रहोनी संस्थाने कहे .त्रिकोणकेन्डायगतैः शुनग्रहैर्विसप्तमेनासुरपूजितेन च । स्युः क्रूरचन्ह रिपुदविक्रमाश्य ११ गैः,कर्तुःश्रियः सन्निहिताश्च देवताः॥५॥ अर्थ-शुन्न ग्रहो त्रिकोण, केंज अने अगीयारमा स्थाने रह्या होय, तेमां पण शुक्र सातमा सिवाय बीजां स्थानोमा रह्यो होय, तथा क्रूर ग्रहो अने चं उजा, त्रीजा अने श्रगीयारमा स्थाने रह्या होय. श्रावी ग्रहसंस्था समये कार्य कर्यु होय तो कर्ताने लदमी मळे वे श्रने प्रतिमानी सांनिध्यमां देवता रहे . सातमा स्थानने वर्जीने केंज अथवा त्रिकोणमा रहेलो शुक्र जाणवो. क्रूरचन्ः एटले क्रूर ग्रहो अने चंड. ते चं श्रने क्रूर ग्रहो प्रतिष्ठादिक लग्नमां त्रीजे, उठे अने श्रगीयारमे स्थाने रह्या होय तोज ते शुल बे. अहीं था प्रमाणे अपवाद जे. "पापोऽपि कर्तृजन्मेशः केन्प्रस्थः शस्यते ग्रहः। शून्यानि च केन्जाणि मूर्ती जीवशनार्गवाः॥१॥" "कर्ताना जन्मनो स्वामी पापी-क्रूर होय तोपण जो ते ग्रह केंजमा रह्यो होय तो ते शुन्न ने, अने केंजस्थान श्रशून्य होय तो ते वखाणवा लायक , तथा पहेला स्थानमा रहेला बुध, गुरु अने शुक्र शुक्ल ले." नावार्थ ए डे के-कर्ता एटले प्रतिष्ठा करावनार, श्रावक, दीक्षा लेनार शिष्य अथवा दीक्षा देनार गुरुना जन्मने विषे अथवा नामने विषे जे राशि होय तेनो स्वामी पापी होय तोपण जो ते केंजमा रह्यो होय तो शुज ने, अने केंप्रस्थाने शुल ग्रहो सहित होय तो ते श्रेष्ठ , पण शून्य होय तो ते श्रेष्ठ नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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