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________________ ॥ चतुर्थो विमर्शः॥ ३३३ करवी सफळ , अने स्थायी ग्रहो वळवान् होय तो पोताने स्थाने ज स्थिति करवी सफळ , एटले के शत्रुनी पहेलां पोते प्रयाण न करवं. विशेष ए जे जे-“स्थायी अने यायी ग्रहो मिश्र होय एटले के बन्ने ग्रहोर्नु वळवानपणुं होय तो वैधी नाव करवो, एटले के अर्ध सैन्य स्थायी राखq अने अर्धा सैन्यने प्रयाण कराव. तथा सौम्य ग्रहो बळवान् होय तो संधि करवी अने क्रूर ग्रहो वळवान् होय तो युट करवायी जय थाय . वन्ने जातना ग्रहो निर्वळ होय तो कोश नाग्यवान् अन्य राजानो आश्रय करवो.” आ सर्व योगयात्रा ग्रंथमां कडं ठे. आ प्रमाणे पचीश श्लोकोए करीने यात्रानी लग्नकुंमळीनुं स्वरूप विस्तारथी कर्वा. या स्वरूप सामान्य रीते राजादिकने माटे जाणवू, कारण के राजा पण नीचेना श्लोकमां कहेखा योगो न मळे तोपण केवळ लग्नना बळथी पण यात्रा करी शके . ते विषे लह कहे जे के "ऐकान्तिकगन्तव्ये दैवेन निपीमिते च यातव्ये । केवल विलग्नयोगादपि याता सिधिमानोति ॥ १॥" "दैवयोगे अवश्य एकांते करीने यात्रा करवानी जरूर पमी होय तो केवळ खनना बळथी पण यात्रा करनार सिधिने पामे जे.” ___ हवे शुल तिथि, नक्षत्र, लग्न विगेरेना बळ विना पण जेवा ग्रहयोगोए करीने राजाउनी यात्रा सफळ थाय बे तेवा मात्र राजाने ज योग्य एवा यात्राने लायक ग्रहयोगो कहेवानी श्वाथी कहे जे. चौराणां शकुनैर्यात्रा नदात्रैश्च हिजन्मनाम् । मुहत्तः सिझयेऽन्येषां राज्ञां योगैश्च ते त्वमी ॥५१॥ अर्थ-चोरोने शकुनवझे यात्रा करवी सिधिने माटे बे, ब्राह्मणोने नक्षत्रनी शुधिए करीने यात्रा करवी शुल बे, बीजा एटले वैश्य, शूज, कारीगरो विगेरेने शुन मुहूर्ते करीने यात्रा करवी शुनजे, अने राजाने योगोवमे करीने यात्रा करवी शुल, एटले के तिथि, वार अने लग्नादिकनी शुद्धि न होय तोपण राजाउने श्रा ग्रहयोगोमां यात्रा करवाथी कार्यसिद्धि थाय ने. दैवज्ञवसनमां कडं बे के "तिथि १ कण न ३ वाराणां । साध्यं योगेन सिध्यति । तस्मात्सर्वेषु कार्येषु ग्रहयोगान् सुचिन्तयेत् ॥ १॥" "तिथि, मुहूर्त, नत्र अने वारोथी साधवा खायक कार्यों योगवझे सिख थाय ने, तेथी सर्वे कार्योमा ग्रहयोगनो सारी रीते विचार करवो.” आ.३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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