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________________ ॥श्रारंसिद्धि। वळी जेनो वार शुल अथवा अशुल होय तेनी होरा पण तवी ज शुज के अशुल जाणवी. तेनुं फळ शौनक था प्रमाणे कहे . "रूपं ग्रहस्य वर्गे स्वदिने विगुणं स्वकालहोरायाम् । त्रिगुणमरिवर्गयोगे फलस्य पात्यस्तृतीयांशः॥१॥" "ग्रहनुं फळ पोताना वर्गमां सर ज (पूर्ण) , पोताने दिवसे बमणुं जे, पोतानी काळहोरामां त्रण गणुं बे, श्रने शत्रुना वर्गने योगे त्रीजा नागनुं फळ मळे बे." तथा लव कहे के“बलिनः कंटकसंस्था वर्षाधिपमासदिवसहोरेशाः। विगुणशुनाशुनफलदा यथोत्तरं ते परिझेयाः ॥ १॥" "वर्षनो स्वामी, मासनो स्वामी, दिवसनो स्वामी अने होरानो स्वामी ए कंटक (केंज)स्थानमा रह्या होय तो ते बळवान् , तथा ते उत्तरोत्तर बमणा बमणा शुनाशुन फळने आपनारा .” प्रश्रम स्थानमा रहेखा ग्रहो तथा तेना षड्वर्ग विगैरेनी व्यवस्था कही. हवे बाकीना केंजादिक स्थानने श्राश्रीने कहे . केन्डेषु ग्रहशून्येषु लग्ने वीर्येण वर्जिते । बलहीनैश्च सौम्यैः स्यादनिषेणयतो जयम् ॥ ४ ॥ अर्थ केंजस्थान ग्रहवमे शून्य होय, लग्न वीर्यवझे रहित होय तथा सौम्य ग्रहो बळहीन होय, ते वखते शत्रु तरफ खम्वा माटे प्रयाण करनारने लय थाय . . केंजस्थान ग्रहशून्य होय एटले प्रथम तो केंना एक पण स्थानमा कोइ पण सौम्य ग्रह होय तो ज यात्रा अथवां बीजां कार्य करवा शुल . ते सिवाय शुल नथी. जो कदाच केंना कोइ पण स्थानमा कोइ पण सौम्य ग्रह न होय तो केंषनुं एक पण स्थान उपचयकारक क्रूर ग्रहवमे सहित होय तोपण ते शुल बे. केंजनां सर्व स्थानो एक पण ग्रह रहित होय तो सर्वथा अनिष्ट थाय. ते विषे रत्नमाळामां कडं ले के___“पापोऽपि कामं बलवान्नियोज्यः, केन्जेषु शून्यं न शिवाय केन्यम्"। "पापग्रह पण बळवान् करीने अवश्य केंजमां खाववो जोइए, केमके केंज शून्य होय तो ते कल्याणने माटे नथी." विशेष एटर्बु ले के-केंजमा सौम्य ग्रहो पापग्रहोए करीने सहित रह्या होय तो मोटा कष्टथी यात्रा सिद्ध श्राय . ते विषे लन कहे जे के "सौम्यैश्च पापैश्च चतुष्टयस्थैः, कृवण संसिधिमुपैति यात्रा"। "सौम्य तथा पापग्रहो केंजमा रह्या होय तो कष्टे करीने यात्रा सिधिने पामे ." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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