SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥वितीयो विमर्शः॥ ११७ "सोधरनो गर्न, तखनां पांदगां, मोथ, हाथीनो मद अने कस्तूरीना जळवमे स्नान करवायी राहुनी पीमा रोकाय , अने ते ज स्नान बकराना मूत्र सहित करवाथी केतुनी पीमा रोकाय जे." “सप्रियंगुरजनीध्यमांसीकुष्ठलाजसितसर्षपचन्ः। __ वारिनिः सहवचैः सहरोधैः स्नानमत्ति निखिलग्रहपीडाम् ॥ २॥" "प्रियंगु (कांग), हळदर, जटामांसी, कुष्ठ (एक जातनी वनस्पति ), लाजा, धोळा सरसव अने कपूर सहित तथा वज अने लोध्र सहित जळवमे स्नान करवाथी समग्र ग्रहोनी पीमा नाश पामे ." । . श्रा स्नानो राजादिकने ज उचित . अन्य जने तो श्रा प्रमाणे करवू."रत्तं १ सेकं २ रत्तं ३ नीलं पीकं ५ सिधे ६ तिसु किन्हें ए। पूचं बलिं च कुजा सूराईणं विरुधाणं ॥१॥" "सूर्यादिक विरुष्प होय तो तेनी शांति माटे अनुक्रमे राता १, श्वेत २, राता ३, खीला ४, पीळा ५, श्वेत ६ अने जेसा व्रण एटले शनि, राहु श्रने केतुनी शांति माटे काळा ए पदार्थोथी (पुष्पादिक, धान्यादिकथी) पूजा तथा बलिदान करवां.” श्रा प्रमाणे हर्षप्रकाशमां कडं . ।इति गोचरघारम् । ६ ॥ इति श्रीमति श्रारंसिधिवार्तिके राशि १ गोचर २ परीक्षात्मको वितीयो विमर्शः॥२ श्रीसूरीश्वरसोमसुन्दरगुरोनिःशेषशिष्याग्रणीर्गन्धः प्रचुरत्नशेखरगुरुर्देदीप्यते सांप्रतम् । तबिष्याश्रवहेमहंसरचितस्यारं नसिद्धेः सुधी शृंगारानिधवार्तिकस्य किल दृक् २ संख्यो विमर्शोऽनवत् ॥२॥ श्रीमान् सूरीश्वर सोमसुंदर गुरुना समग्र शिष्योमा अग्रेसर अने गवना नायक एवा पूज्य श्री रत्नशेखर गुरु हालमा देदीप्यमान वर्ते . तेमना शिष्य हेमहंसे रचेली श्रारंजसिधिना सुधीभंगार नामना वार्तिक (वृत्ति )नो आ बीजो विमर्श पूर्ण थयो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy