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________________ ११४ ॥ आरंसिधि॥ अर्थ-बुध आखी राशिमां फळदायक , सूर्य अने मंगळ थादिमां, गुरु अने शुक्र मध्यमां अने चंड तथा शनि अंत नागमां फळ देनारा के. फळदायक एटले शुन्न गोचरमा रहेलो ग्रह शुन्न फळ आपे, अने अशुल गोचरमां रह्यो होय तो अशुन फळ आपे बे. बुध श्राखी राशिमां फळ आपे ने एटले के जे राशिने पोते आक्रमण करी होय ते आखी राशिमां. श्रादिमां एटले पहेला प्रेष्काणमां, मध्यमां एटले बीजा जेष्काणमां अने अंते एटले त्रीजा जेष्काणमां. श्रा नियम सहज (सरल) गतिमां वर्तता ग्रहोने आश्रीने कह्यो बे, पण ज्यारे वक्रतार करीने तथा अतिचारपणाए करीने ते ग्रहो बीजी राशिमां गया होय त्यारे आ प्रमाणे जाणवू. "पदं १ दशाहं २ मासं च ३ दशाई मासपञ्चकम् । __वक्रेऽतिचारे नौमाद्याः पूर्वराशिफलप्रदाः ॥१॥" "मंगळ वक्र गतिमां के अतिचार गतिमां होय तो पंदर दिवस सुधी पूर्वनी राशिनुं फळ आपे ने, ए प्रमाणे बुध दश दिवस, गुरु एक मास, शुक्र दश दिवस श्रने शनि पांच मास सुधी फळ आपे बे. अहीं पूर्वनी राशि एटले के वक्री होय तो पळीनी राशिनुं श्रने अतिचारी होय तो पहेलानी राशिनुं फळ आपे , एम जाणवू. प्रश्न प्रकाशकर तो आम कहे ."वक्रेऽतिचारे जौमाद्याः पूर्वराशिफलप्रदाः। जीवः शनिश्च यत्रस्थौ तस्य राशेः फलप्रदौ ॥१॥" "मंगळ विगेरे ग्रहो वक्री के अतिचारी होय तो पूर्वराशिना फळने आपे ने, परंतु गुरु अने शनि तो जे राशिमा रह्या होय ते जराशिना फळने आपे ने." विशेष श्राप्रमाणे "राश्यन्तगतः खेटः परजावफलं ददाति पृचासु। __ अन्त्यघटीं यावदसावासीनफलं विवाहादौ ॥१॥" "प्रश्नने विषे राशिना अंत नागमा रहेलो ग्रह पसीना स्थानना फळने आपे , अने विवाहादिकमां तो ते ग्रह अन्त्यनी घमी सुधी ज्यां रहेलो होय ते ज स्थाननुं फळ आपे जे." अहीं राशिनो अंत्य एटले बेहो त्रिंशांश लेवो. __ ग्रहगोचर विरुष्ठ (अशुल ) होय तो माणसे विशेषे करीने सत्कर्ममा (धर्मकार्यमां) तत्पर रहेवू, अने अत्यंत दूरनी यात्रा, अश्वक्रीमा, विकाळे फरवू अने साहस कार्य विगेरे कार्यनो त्याग करवो. श्रा प्रमाणे (विरुध ग्रहगोचरमां) यात्रादिक कर्या विना निर्वाह अश् शके नहीं, तेश्री ते ग्रहोनी शांतिने माटे कहे बे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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