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________________ ॥हितीयो विमर्शः॥ शुक्ल तथा कृष्णपक्षमा पांच पांच तिथिने श्राश्रीने हीन, मध्यम अने उत्तमता जे प्रमाणे कही , ते प्रमाणे चंजर्नु पण हीन, मध्यम अने उच्च वळपणुं अनुक्रमे तथा उत्क्रमे जाणवु. जातक वृत्तिमां तो आ प्रमाणे कडं वे.-"चंड उदय पामे त्यारथी दश दिवस सुधी मध्यम वळवान् बे, बीजा दश दिवस सुधी अधिक बळवान् बे, अने त्रीजा दश दिवस हीन बळवाळो , तथा कृष्ण चतुर्दशी, अमावास्या अने शुक्ल प्रतिपद् ए त्रण दिवस तो सर्वथा बळ रहित बे, परंतु चंज पर सौम्य ग्रहोनी दृष्टि पमती होय तो निरंतर बळवान् बे.” अन्य आचार्यो कहे जे के-"कृष्णपक्षनी अष्टमीना अर्वा नाग पजी अने शुक्ल अष्टमीना अर्धा नाग सुधी चंड क्षीण जाणवो, बाकीना समयमा पुष्ट जाणवो.” नत्र समुच्चय ग्रंथमां तो था प्रमाणे कडं . "उदिते च तथा चन्जे शुजयोगे शुने तिथौ । __ कृष्णस्य दशमी यावत्सर्वकार्याणि साधयेत् ॥१॥ "चंजनो उदय थाय त्यारथी आरंजीने कृष्णपदनी दशमी सुधी शुल योग अने शुल तिथिने दिवसे सर्व शुन्न कार्यों करवां." विशेष ए ने जे-"शुक्लपक्षनी बीजने रोज चंड उदय पामवानो ने तोपण दिवसना नागमां ते तिथि लेवी नहीं, कारण के प्राये करीने दृष्टिना विषयनो नाव (होवापणुं) अने अनावे (नहीं होवापणुं ) करीने बीजनो व्यवहार करवामां श्रावे . ते विषे विवाहवृंदारकमां कडं डे के "उदेति चायं प्रतिपत्समाप्तौ कृशोऽपि वर्धिष्णुतया प्रशस्तः । दीपान्तरस्थो विफलस्तु तावद्यावन्न पृथ्वीनयनाध्वनीनः॥१॥" "श्रा चंड प्रतिपद्नी समाप्तिमा उदय पामे जे. ते कृश बतां पण वृद्धि पामवानो होवाथी प्रशस्त . तथा बीजा दीपमा रहेलो ते चंड ज्यांसुधी जगतना लोकोनी दृष्टिना मार्गमां श्राव्यो न होय, त्यांसुधी ते निष्फळ ये." उपर जे चंजना निर्वळपणामां तारानुं वळ लेवानुं कहुं ते विषे कह्यु बे के__ "चन्नाद्बलवती तारा कृष्णपदे तु नर्तरि । विकले प्रोषिते च स्त्री कार्य कर्तुं यतोऽर्हति ॥ १॥" "कृष्णपक्षमां तो चंड करतां तारा बळवान् , कारण के नर्ता विकलांग होय अथवा परदेश गयो होय तो स्त्री पोते ज कार्य करवाने योग्य वे." तेथी करीने"कृष्णस्याटम्यादनन्तरं तारकावसं योज्यम् । प्रतिपत्प्रान्तोत्पन्नं सन्ध्याकासोदयं यावत् ॥१॥" आ०१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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