SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी होता है। पत्नी वस्तुतः लक्ष्मी ही सिद्ध होती है तथापि ससुराल पक्ष से जातक को कोई लाभ नहीं मिलता। ऐसे जातक प्रायः अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहते हैं। और उनका यही स्वभाव उन्हें रुग्ण भी कर सकता है। उन्हें खांसी, कफ एवं रक्ताल्पता. की शिकायत हो सकती है। श्रवण नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर, सदैव तरुणी नजर आने वाली होती हैं। उनके व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है। वे स्वभाव से दयालु, परोपकारी तथा महत्त्वाकांक्षी होती हैं। उन्हें अपने खर्चीले स्वभाव पर अंकुश लगाने की सलाह दी जाती है। ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य सामान्यतः ठीक ही रहता है पर उन्हें अपनी रक्ताल्पता को हलके नहीं लेना चाहिए। धनिष्ठा नक्षत्र के चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: सूर्य, द्वितीय चरण: बुध, तृतीय चरणः शुक्र, चतुर्थ चरणः मंगल। धनिष्ठा नक्षत्र के विभिन्न चरणों में सूर्य प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक को कार्य कुशल तथापि दंभी और स्वार्थी बना सकता है। विधवाओं और तलाकशुदा स्त्रियों में उसकी विशेष रुचि होती है। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य जातक को कृपण मनोवृत्ति का बनाता है। इस चरण में चंद्र, मंगल एवं शनि से सूर्य की युति जातक के लिए बचपन में घातक कही गयी है। तृतीय चरण: यहाँ सूर्य जातक को बुद्धिमान एवं दीर्घाय बनाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ जातक की ललित कलाओं में रुचि होती है। सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि फल वैसे ही होते हैं, जैसेकि श्रवण नक्षत्र स्थित सूर्य पर । यही बात अन्य ग्रहों के बारे में भी है। पुनरावृत्ति दोष से बचने के लिए वे यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। पाठक सूर्य एवं अन्य ग्रहों पर दूसरे ग्रहों की दृष्टि के फल श्रवण नक्षत्र वाले अध्याय में पढ़ सकते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में चंद्र के फल प्रथम चरण: यहाँ चंद्र रोगग्रस्त एवं दुर्घटनापूर्ण बचपन की सूचना देता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक धनी एवं समझदार होता है। युवावस्था में रोगग्रस्त होने की आशंका प्रबल रहती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 217 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy