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________________ को अधिकाधिक बोधगम्य बनाने का पूर्ण प्रयत्न लेखक ने किया है। प्रत्येक श्लोक की व्याख्या का क्रम इस प्रकार है-अवतरणिका/मूल पद्य/अन्वय/मनोहरा (संस्कृत) टीका/हिन्दी पद्यानुवाद/शब्दार्थ/ श्लोकार्थ और भावार्थ। प्राचार्यश्री की लेखनी ने मूल रचना के मन्तव्य को बहुत ही स्पष्टता से प्रस्तुत किया है। मैं इस सुन्दर टीका के लिए प्राचार्यश्री का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। ग्रन्थ के अन्त में प्राचार्यश्री द्वारा विरचित 'श्रीमहादेवस्तुत्यष्टकम्' भी मुद्रित है । यह भी बड़ा सरल और सुबोध है। शब्दचयन बहुत उत्तम है। प्राचार्य श्री अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी सन्त हैं। हिन्दी, संस्कृत और गुजराती में आपने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। मैं सरस्वती के इस वरदपुत्र के दीर्घ और नीरोग जीवन की कामना करता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि आपको लेखनी इसी प्रकार जिनवाणी के मर्म को प्रकाशित करती रहेगी। पुस्तक-प्रकाशन में सहयोग करने वाले सभी हार्दिक साधुवादाह हैं । अन्त में ' त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषयं सालोकमालोकितम्, साक्षात् येन यथा स्वयं करतले रेखात्रयं साङगुलि । रागद्वेषभयामयान्तक जरा लोलत्व लोभादयो, नालं यत्पदलंघनाय स महादेवो मया वन्द्यते ।। इति शुभम् ।। वसन्त पञ्चमी २६-१-८५ ___ --डा. चेतनप्रकाश पाटनी जोधपुर ----ग्यारह--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002760
Book TitleMahadev Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSushilmuni
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi
Publication Year1985
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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