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________________ ९९० जयोदय-महाकाव्यम् [५३-५४ __घोषकेत्यादि-अथाधुनाऽऽभीरस्त्रियस्ता घोषकस्योलपेन घोषवल्ल्या युक्तस्य कुटीर. कस्य प्रान्तं बाहुनाऽवलम्ब्य धृत्वा लोलया चपलया दृशा चक्षुषेवंप्रकारेण सविस्मयमाश्चर्यपूर्वकं नृपवरं ददृशुरिति जातिः ।।५२॥ । तेषु सन्निधिमुपाश्रितेषु चानेकधान्यगणकृष्टिमद्रुचा । ग्रामकेषु स मुदा रतां श्रियं वीक्षमाण उदगादपि ह्रियम् ॥५३॥ तेष्वित्यादि-स राजा जयकुमारः सन्निधि नैकट्यं यद्वा समीचीनं निधि धनराशिमुपाश्रितेषु प्रामकेषु चानेकधान्यानं गोधूमावोनां गणस्य कृष्टिर्यद्वाऽनेकघाऽन्येकषां बहुप्रकारेण परेषां गणस्य या कृष्टिराह्वाननं तद्वती या रुक् रुचिस्तया हेतुभूतया मुवा प्रसन्नतापूर्वकं रतां तल्लीनां श्रियं सम्पत्ति तन्नामस्त्रियमपि वीक्षमाणोऽवलोकयन् ह्रियं त्रपामुवगाज्जगामेति समासोक्तिरलंकारः॥५३।। मन्थनश्रमवशात् परिस्फुरत्सिप्रबिन्दुवदनं महीभृता। प्रस्फुटामृतकणं सुधारुचो बिम्बमैक्षि खलु गोपयोषिताम् ॥५४॥ मन्थनेत्यादि-तत्र महीभृतानेन मन्थने दधिविलोडने श्रमवशात् परिस्फुरन्ति सिप्रस्य प्रस्वेदस्य बिन्दवो यत्र तद् गोपयोषितां गोपीनां वदनं मुखं तत्खलु प्रस्फुटा: प्रकटीभूता अमृतस्य कणा यत्र तत्सुधारुचश्चन्द्रस्य बिम्बमैक्षि समवलोकितमित्युत्प्रेक्षा ॥५४॥ अर्थ-इस समय अहीरोंकी स्त्रियाँ घोषवल्ली-कुमड़ा आदि को लताओंसे सुशोभित कुटियाके प्रान्त भागको भुजासे पकड़ कर चञ्चल दृष्टिसे राजाको देख रही थी ॥५२॥ ___अर्थ-वह राजा जयकुमार सन्निधि-निकटता अथवा समीचीन धनराशिको प्राप्त हुए ग्रामोंमें लीन लक्ष्मीको अनेक प्रकारके धान्यसमह अथवा विविध प्रकारके अन्य लोगों सम्बन्धी आह्वाननकी रुचिसे हर्षपूर्वक देखते हुए लज्जाको भी प्राप्त हुए थे। भावार्थ-अन्य पुरुषमें प्रीति करने वाली स्त्रीको देखता हुआ मनुष्य जिस प्रकार लज्जाको प्राप्त होता है, उसी प्रकार जयकुमार ग्रामोंमें रत-तल्लीन लक्ष्मीको देखकर लज्जाको प्राप्त हुए थे ॥५३॥ अर्थ-वहाँ राजाने मन्थन क्रियाके श्रमसे उत्पन्न पसीनेकी बूंदोंसे सहित गोपाङ्गनाओंके मुखको क्या देखा था, मानों छलकते हुए अमृत कणोंसे युक्त चन्द्रमाका बिम्ब ही देखा था ॥५४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002757
Book TitleJayodaya Mahakavya Uttararnsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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