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________________ पट्टावली-पराग कुमतियो! यह क्या कहते हो? लोंका ने किस बात का खण्डन किया है, वह समझ तो लो। "लोका सामायिक को दो से अधिक बार करने का निषेध करता है, पर्व विना पोषध का निषेध करता है, व्रत बिना प्रतिक्रमण करने का निषेध करता है। वह भाव-पूजा से ज्ञान को प्रच्छा बताता है, वह द्रव्य-पूजा का निषेध करता है, क्योंकि उसमें धर्म के नाम से हिंसा होती है । ३२ सूत्रों को वह सच्चा मानता है, समता-भाव में रहने वालों को वह साधु कहता है।" उक्त प्रकार से लौका का धर्म सच्चा है। परन्तु भ्रम में पड़े हुए मनुष्य उसका मर्म नहीं समझते । १५॥ १६।१७।१८।१६" "जो कुमति है वह हठवाद करता है, जैसे बिच्छू के काटने से उन्मादी हुमा बन्दर । झठ बोलकर जो कर्म बांधता है वह धर्म का सच्चा मर्म नहीं जानता। यतना में धर्म है और समता में धर्म है, इनको छोड़कर जो प्रवृत्ति करते हैं वे कर्म बांघते हैं, जो परनिन्दा करते हैं वे पाप का संचय करते हैं, जिनमें समता नहीं है उनके पास धर्म नहीं रहता। श्रीजिनवर ने दया को धर्म कहा है, शाह लौंका ने उसको स्वीकार किया है और हम उसी की आज्ञा को पालते हैं, यह तुमको बुरा क्यों लगता है ? क्या तुम दया में पाप मानते हो जो इतना विरोध खड़ा कर दिया है, तुम सूत्र के प्रमाण देखो, दया विना का धर्म नहीं होता. जो जिन आज्ञा का पालन करते हैं, उनको मेरा नमस्कार हो । मेरे इस कथन से जिनके मन में दुःख हुया हो उनके प्रति मेरा मिथ्यादुष्कृत हो। सं० १५७८ के माघ सुदी ७ को यति भानुचन्द ने अपनी बुद्धि के उल्लास से लौका के दया-धर्म पर यह चौपाई लिखी है, जो पढ़ने वालों के मन का उल्लास बढ़ाये । २०१२१॥२२॥ २३।२४।२।" ऊपर जिसका सारांश लिखा है उस दया-धर्म चौपाई से शाह लौका का जीवन कुछ प्रकाश में माता है। उसका जन्म-गांव, माता-पिता के नाम भौर जन्म-समय पर यह चौपाई प्रकाश डालती है। लौका मरहटवाड़ा में नहीं पर लीम्बड़ी (सौराष्ट्र) में जन्मे थे, उनका जन्म १५वीं शती के मन्तिम चरण में हुआ था। अपनी २८ वर्ष की उम्र में उसने यतियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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