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________________ १६२ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना मानने को जी चाहता है, पर कतिपय बातें ऐसी भी हैं जो इस थेरावली की हिमवत्-कर्तृकता में शंका उत्पन्न करती हैं, वस्तुत: यह थेरावली हिमवत् - कृत है या नहीं यह प्रश्न अभी अनिर्णीत है, इसका निर्णय किसी दूसरे लेख में किया जायगा । यहाँ पर तो इसमें दी हुई काल-गणना और मुख्य मुख्य अन्य घटनाओं का दिग्दर्शन कराना ही पर्याप्त होगा । थेरावली की विशेष बातें थेरावली की प्रथम गाथा में भगवान् महावीर और उनके मुख्य शिष्य इंद्रभूति गौतम को नमस्कार किया गया है और बाद में १० गाथाओं में प्रसिद्ध स्थविरावलियों के क्रम से सुधर्मा, जंबू, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, आर्य महागिरि, आर्य सुहस्ती और सुस्थितसुप्रतिबुद्ध - इन स्थविरों की वंदना की है । प्रारंभ की मूल गाथा इस प्रकार है "नमिऊण वद्धमाणं, तित्थयरं तं परं पयं पत्तं । इंदभूइगणनाहं, कहेमि थेरीवलिं कमसो || १ ||" गाथा छट्ठी में एक महत्त्वपूर्ण बात की सूचना है । स्थविर यशोभद्र के वर्णन में लिखा है कि उनके समय में अतिलोभी आठवाँ नंद मगध का राजा था । देखो निम्नलिखित गाथा "जसभद्दो मुणि पवरो, तप्पयसोहंकरो परो जाओ । अटुमणंदो मगहे, रज्जं कुणइ तया अइलोही ||६|| " I यशोभद्र का स्वर्गवास इस थेरावली में तथा दूसरी सब पट्टावलियों में वीर - निर्वाण से १४८ वर्ष बीतने पर होना लिखा है । इसी समय की सूचना आठवें नंद के होने की इस गाथा में की है। इस थेरावली में आगे जो निर्वाण से १५४ के बाद चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण लिखा है तथा २. रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेश वंश की स्थापना का उल्लेख, विक्रमार्क और भिल्ल संबंधी घटना, दो तीन जगह विक्रम संवत् के प्रयोग वगैरह ऐसी बातें हैं जो इस भगवली की आर्य हिमवत् कर्तृकता में संशय उत्पन्न करती हैं। I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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