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________________ धर्मरसायन - -16 उस पापकर्मा को भूमि पर गिराकर वे उसे पैरों से कुचलते हैं तथा उसके शरीर को सिंघाटक अर्थात् लोहे के यन्त्रविशेष के ऊपर रखकर तेजी से इधर-उधर रौंदते हैं। अलियस्स फलेण पुणो गीवाए चंपिऊण पाएहिं । तस्स य खणंति जीहा समूला हु णारइया ।।511। अलीकस्य फलेन पुनः ग्रीवां चम्पयित्वा पादैः। तस्य च खनन्ति जिह्वां समूलां हि नारकाः ।।51|| असत्यभाषण के फलस्वरूप फिर उसकी ग्रीवा को पैरों से दबाकर नरकवासी उसकी जीभ को समूल (जड़सहित) उखाड़ते हैं। खंडंति दो वि हत्था तेणिकफलेण तिक्खवंसीए। सूलम्मि छुहंतिपुणोणारइया सुठु तिवखेहिं ।।5211 खण्डयन्ति द्वावपिहस्तौ तेजितफलेन तीक्ष्णवंश्या। शूलैः स्पर्शयन्ति पुनः नारकाः सुष्ठ तीक्ष्णैः ।।52|| वे नरकवासी उसके दोनों हाथों को धातु के फलक के पैने सिरे से काट डालते हैं और फिर (उस पापी के शरीर में) जोर से पैना शूल (बर्डी या भाला) चुभाते हैं। परदारस्स फलेण य आलिंगावंति लोहपडिमाओ। ताओ डहंति अंगं तत्ताओ अग्गिवण्णाओ 1531 परदाराणां फलेन च आलिङ्गयन्ति लोहप्रतिमाः । ताः दहन्ति अङ्गं तप्ताः अग्निवर्णाः ||53|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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