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________________ साधना की भूमिकाएं - ३९ कर देता है । जिनसे प्राणवायु शरीर के भीतर जाती है उन्हें ढंक देता है । हमारे मन पर भी मैल जमता है । मन के भी पसीना आता है। वह मैल बनता है, रजें चिपटती हैं और वह गाढ़ा बन जाता है । मन के छिद्र रुक जाते हैं। जिनके द्वारा हम स्वस्थ विचारों को ले सकते हैं वे सब रोम-कूप बंद हो जाते हैं । फिर भीतर से सड़ांध होती है और बुरे विचार आते रहते हैं, बुरी कल्पनाएं उभरती रहती हैं। मलिनता का हेतु : मूढ़ता ___ मानसिक विकारों का मूल हेतु है-मन की मलिनता | फिर प्रश्न होगा कि यह मलिनता कहां से आती है ? यह पसीना कहां से आता है । पसीने का भी हेतु होता है । हमारी त्वचा के नीचे स्वेद की ग्रंथियां होती हैं । उन स्वेद-ग्रंथियों के कारण शरीर में पसीना आता है । मन के नीचे भी कोई स्वेदग्रंथि होनी चाहिए जिससे मन पसीजे, पसीना आए, मैल जमे और रजें चिपट जाएं । वहां भी स्वेद-ग्रंथियां हैं । वे हैं-राग और द्वेष । उन ग्रंथियों से कुछन-कुछ चूता रहता है और मन पर मैल जमता रहता है । राग और द्वेष की ग्रंथियों मे मूर्छा की तरंगें निकलती हैं, मूर्छा की धार निकलती है, मूर्छा का पसीना चूता है, वह मन पर जमता जाता है । मन मलिन होता रहता है । यदि प्राणवायु ठीक मिलता है तो हमारा शरीर बिल्कुल ठीक रहेगा, फेफड़ा पूरा काम करेगा, रक्त शुद्ध रहेगा | यदि प्राणवायु मिलना बंद हो जाता है तो फेफड़ा पूरा काम नहीं करता, विकृत रक्त शरीर में चक्कर काटने लग जाता है । ठीक ऐसे ही मन को यदि पवित्र वातावरण मिलता है तब वह ठीक काम करता है। किंतु जब वह नहीं मिलता तब मन में बुरे विचार घूमने लगते हैं और मन विकृतियों से भर जाता है । बुरी कल्पनाएं मनुष्य पर हावी हो जाती हैं । मूर्छा की तरंगे सघन होते-होते उस पर जम जाती है और घनीभूत मूर्छा चित्त की एक अवस्था का निर्माण करती है। उस अवस्था का नाम है-मूढ़ता । मन की यह पहली अवस्था है । मन की ऊर्मियां घनीभूत हो जाती हैं । विज्ञान की भाषा में ऊर्जा यानी एनर्जी घनत्व में बदल जाती है, मास (Mass) में बदल जाती है । आज के वैज्ञानिक सापेक्षवाद ने ऊर्जा और द्रव. मास और एनर्जी-इन दोनों के बीच कोई स्पष्ट भेदरेखा नहीं खींची है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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