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________________ १४ - जैन योग तत्त्वों में आत्मीयता का अभिनिवेश होना ममकार है जैसे-मेरा शरीर, मेरा घर, मेरा पुत्र आदि । शरीर पौद्गलिक है । इसलिए वह अनात्मीय है । अनात्मीय तत्त्वों में सबसे अधिक आत्मीयता की वृद्धि शरीर में ही होती है । शरीर आत्मीय नहीं है और उसमें हमारी आत्मीयता की बुद्धि होती है । वही हमारे मन में अनात्मीयता को आत्मीय मानने का संस्कार उत्पन्न करती है । फिर हम हर अनात्मीय वस्तु को आत्मीय मानने लग जाते हैं । ममकार के साथ-साथ अहंकार का संस्कार भी पुष्ट होता जाता है । अहंकर का अर्थ है आरोपित उपाधियों के संदर्भ में अपने आपको देखना-जैसे मैं बड़ा आदमी हूं, मैं अधिकारी हूं, धनी हूं, आदि-आदि । अहंकार की राख जब गहरी हो जाती है, तब वह अस्तित्व की ज्योति को आच्छन्न कर देती है। इसलिए साधक अहं को विसर्जित करने के लिए उसके निदान को खोजता है । इस जगत् में मूल तत्त्व दो हैं-चेतन और अचेतन | स्वरूप की दृष्टि से दोनों स्वतंत्र हैं किंतु इस जागतिक वातावरण में वे एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । उनके पारस्परिक प्रभाव की प्रक्रिया को देखकर चेतन और अचेतन को सर्वथा स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता । चेतन का अस्तित्व देह के माध्यम से अभिव्यक्त होता है । देह पौद्गलिक है । देह और चेतन में गहरा संबंध है | यह कब से है, इसका पता लगाना कठिन है। किंतु इतना स्पष्ट है कि चेतन के बिना देह का निर्माण और स्थितिकरण नहीं होता और देह के बिना चेतन अपने आपको प्रकट नहीं कर पाता | तात्पर्य की भाषा में चेतन और देह का संयोग ही बंध या संसार है और उनका वियोग ही मुक्ति है। हम किसी भी पदार्थ के स्वतंत्र अस्तित्व को तब स्वीकार करते है, जब उसमें सब पदार्थों से विलक्षण कोई गुण मिलता है । चेतन में चैतन्य गुण विलक्षण है । वह पुद्गल में नहीं है । इसीलिए चेतन का स्वतंत्र अस्तित्व है। आनंद चैतन्य का ही एक विशेष अनुभव है । शक्ति चेतन और अचेतन दोनों में ही होती है । इस प्रकार चेतन का मौलिक स्वरूप चैतन्य है । आनंद और शक्ति-ये दोनों उसके सहवर्ती हैं । गुण और सहवर्ती गुणों की दृष्टि से हम चेतन की व्याख्या इन शब्दों में कर सकते हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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