SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रयोग और परिणाम कार्मण शरीर के साथ संबंध स्थापित कर भेद - विज्ञान का अभ्यास कीजिए । इस भूमिका में ममत्व-विसर्जन हो जाएगा । शरीर मेरा है - यह मानसिक भ्रांति विसर्जित हो जाएगी । यदि आप सोकर कायोत्सर्ग करना चाहते हैं तो १. सीधे लेट जाएं । २. सिर से लेकर पैर तक के अवयवों को पहले तानें और फिर क्रमशः उन्हें शिथिल करें | ३. दीर्घश्वास लें । ४. सममात्रा में श्वास लें । ५. मन को श्वास-प्रश्वास में लगा किसी एक विचार पर स्थिर हो जाएं। सुप्त कायोत्सर्ग में दोनों हाथों-पैरों को अलग-अलग रखिए । यदि आप खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना चाहते हैं तो १. पैरों के पंजों को पीछे से सटाकर और आगे से चार अंगुल के अंतर से स्थापित कर खड़े हो जाइए । २. दोनों हाथों को नीचे की ओर फैला दीजिए । ३. दीर्घश्वास लीजिए । ४. मानसिक निरीक्षण के साथ-साथ शरीर के हर अवयव को शिथिल कीजिए और ध्यान में मग्न हो जाइए । कायोत्सर्ग के साथ यथास्थान इन संकल्पों को दोहराइए १. शरीर शिथिल हो रहा है । २. श्वास शिथिल हो रहा है । १७७ ३. स्थूल शरीर का विसर्जन हो रहा है । ४. तैजस शरीर प्रदीप्त हो रहा है । ५. कार्मण शरीर भिन्न हो रहा है । ६. ममत्व विसर्जन हो रहा है । ७. मैं आत्मस्थ हो रहा हूं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy