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________________ समत्व की प्रज्ञा और बाधाएं; समता की निष्पत्ति; समत्व का जागरण : धर्मध्यान की स्थिरता; समता का चरमबिन्दु : वीतरागता अप्रमाद, वीतराग और केवली अप्रमाद; वीतरागता; कैवल्य : आत्मोपलब्धि ३. पद्धति और उपलब्धि अंतर्यात्रा अध्यात्म है अंतर्यात्रा; अध्यात्म का सोपान : अनुभव; अनुभव प्रत्यक्ष : तर्क परोक्ष; उपदेश परोक्षद्रष्टा के लिए; अमृत का झरना; प्राण चिकित्सा; निवृत्ति: प्रवृत्ति; अध्यात्म की ज्येति : कर्मकांड की राख तपोयोग संवरयोग : तपोयोग; तपोयोग की साधना के सूत्र; के तीन रूप प्रेक्षा ध्यान समता; श्वास-प्रेक्षा; अनिमेष-प्रेक्षा; शरीर - प्रेक्षा; वर्तमान क्षण की प्रेक्षा; एकाग्रता; संयम भावना योग आत्म-सम्मोहन की प्रक्रिया भावधारा और आभामंडल चैतन्य लेश्या : पुद्गल लेश्या; तैजस शरीर है शक्ति केन्द्र; लेश्या का वर्गीकरण; लेश्या और ध्यान; आभामंडल और वर्ण; ध्यान और लेश्या का संबंध; लेश्या और चैतन्य - केन्द्र; वैज्ञानिक निष्कर्ष; लेश्या और मानसिक चिकित्सा; लेश्या और ज्ञान चैतन्य- केंद्र चित्त चैतन्य - केंद्र क्या है ? ; समूचा शरीर ज्ञान का साधक; अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति और अभिव्यक्ति; प्रेक्षा ध्यान की प्रक्रिया; प्रेक्षा ध्यान की निष्पत्ति; केन्द्र और संवादी केन्द्र; चैतन्य - केन्द्र : जागृति कब, कैसे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only १११ ११३ ११५ १२२ १२६ १३६ १३८ १५० www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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