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________________ पद्धति और उपलब्धि ११९ जरूरत नहीं होती । 'उद्देसो पासगस्स नत्थि’- यह साधना का सूत्र है । साक्षात् द्रष्टा के लिए उपदेश की आवश्यकता नहीं होती । वह परोक्षद्रष्टा के लिए होता है । अमृत का झरना साधना करने वाले को चाहिए कि सबसे पहले वह अपने शरीर - यंत्र को समझे । जो शरीर को नहीं समझता, उसका साधना-पथ प्रशस्त नहीं होता । शरीर बहुत बड़ा यंत्र है । विश्व की बड़ी से बड़ी फैक्टरी भी इसके समक्ष छोटी पड़ती है। इसकी संरचना जटिल है मस्तिष्क की संरचना उससे भी जटिल है। इसके अरबों-खरबों प्रकोष्ठ हैं-हजारों-लाखों-करोड़ों स्मृतियों के प्रकोष्ठ, हजारों-लाखों आवेशों के प्रकोष्ठ । उनकी स्वचालित व्यवस्था है । सारी क्रियाएं अपने आप होती हैं । इन सबको समझे बिना साधना का मार्ग प्रशस्त नहीं होता । आज के शरीर-विज्ञान ने हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियों का प्रतिपादन किया है । आज से हजारों वर्ष पहले योग के आचार्यों ने जिन चक्रों का प्रतिपादन किया था उन्हीं स्थानों का वर्तमान शरीर - विज्ञान प्रतिपादन करता है। दोनों में बहुत साम्य है। आज का विज्ञान जिसे 'सिक्रिशन ऑफ ग्लैण्ड्स’ कहता है उसे ही योग के आचार्य चक्रों का विकास तथा अमृत का झरना कहते हैं । कितने निकट की कल्पना है । I प्राण-चिकित्सा चिकित्सा की अनेक पद्धतियां प्रचलित हैं । वे सब बाहर की हैं। एक चिकित्सा पद्धति भीतर की है । वह है मन के द्वारा चिकित्सा । आत्मा के द्वारा चिकित्सा हो सकती है, संकल्प के द्वारा चिकित्सा हो सकती है । हम अनेक रोगों को इस चिकित्सा के माध्यम से मिटा सकते हैं । आज मनुष्य चाहता है कि सुबह बीमार हो तो शाम को स्वस्थ हो जाए । ऐसी चिकित्सा वह चाहता है । उसमें धैर्य नहीं है । वह महीनों तक दवाई लेना नहीं चाहता । मानसिक संकल्प वर्तमान में लाभ का अनुभव कराता है । जिस क्षण संकल्प बलवान होता है उसी क्षण से परिवर्तन होने लग जाता है । यह है प्राणिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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