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________________ १०४ - जैन योग हो गईं तो मनुष्य बहुत बड़े लाभ से वंचित रह जाएगा | संतुलन परम आवश्यक है । एक जंगल कटता है तो वैज्ञानिक चिंतित हो उठते हैं, कि केवल जंगल ही नहीं कटता उसके साथ-साथ वर्षा की कमी हो जाती है, रेगिस्तान बढ़ जाता है, अनाज की कमी हो जाती है, न जाने और कितनों पर असर होता है । एक के साथ अनेक जुड़े हुए हैं । समता ही पर्यावरण का विज्ञान इस पर्यावरण के विज्ञान को अध्यात्म के साधकों ने बहुत पहले ही खोज लिया था । उन्होंने समत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा-'किसी को मत मारो, चोट मत पहुंचाओ, परिताप मत करो, क्लेश मत दो | सबको समान समझो । सबके साथ समत्व का व्यवहार करो ।' इतना ही पर्याप्त नहीं है । समत्व का विकास होता है तो यह बात प्राप्त हो जाती है कि विषमता पैदा मत करो । उन्होंने कहा-अजीव का भी संयम करो । जैसे जीव वैसे अजीव । एक तिनके को भी मत तोड़ो । उन्होंने एक सूक्ष्म बात यही कही कि जीव को मत मारो किंतु जिसमें जीव पैदा करने की क्षमता है, जिसमें उत्पादक शक्ति है, उसे भी नष्ट मत करो । यह समत्व और संतुलन का सिद्धांत जगत् का सार्वभौम नियम है । इसे नहीं तोड़ने की बात बहुत ही सूक्ष्म है । मनुष्य पर्यावरण के चक्र का एक अंश है । यदि किसी भी अवयव पर कोई प्रभाव होता है तो वह स्वयं पर भी होता है और दूसरों पर भी होता है । क्या मकान की एक-एक ईंट को तोड़ने वाला समूचे मकान को नष्ट नहीं कर देता? क्या नींव को क्षति पहुंचाने वाला समूचे मकान को ही भूमिसात् नहीं कर देता ? समत्व का सिद्धांत है कि संतुलन रखो | कहीं भी विषमता पैदा मत करो । न चेतन जगत् में विषमता पैदा करो और न अचेतन में विषमता पैदा करो । तुम्हारे कारण कहीं भी विषमता पैदा न हो । पूर्ण समत्व में रहो, संतुलन रखो। तटस्थता का अभ्यास समत्व का दूसरा अर्थ है-तटस्थता । तुम तटस्थ रहो । एक ओर मत झुको | इस संसार में कभी कुछ अप्रिय घटित होता है और कभी कुछ प्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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