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________________ 132 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा नित्यत्व भी है। इस प्रकार, पदार्थ क्षणिक स्वभाववाला होकर ही उत्पन्न होता है या प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण एकान्तरूप से विनष्ट ही होता है- ऐसा आप बौद्धों का कथन सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि आपका इस प्रकार, का कथन युक्तिसंगत नहीं है। संसार के समस्त पदार्थ पूर्व और उत्तरकाल में क्रमवर्ती पर्यायों से युक्त रहने के कारण उनमें उत्पाद, व्यय और धौव्यत्वतीनों ही हैं। इस प्रकार, पदार्थ सामान्य रूप और विशेष रूप- दोनों ही हैं, ऐसा सिद्ध होता है। क्रमवर्ती पर्यायों के कारण यह उत्पाद-व्ययधर्मा है, साथ ही अपने मूल द्रव्य की अपेक्षा से वह ध्रौव्यगुण या ऊवंता-सामान्य रूप भी है, ऐसा सिद्ध होता है।" बौद्ध-संतानवाद और उसकी समीक्षा बौद्धदर्शन के अनुसार प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण बदलता रहता है। वह दो क्षण भी एकरूप नहीं रहता है। इस आधार पर बौद्ध-दार्शनिक यह मानते हैं कि सभी पदार्थ क्षणिक ही हैं। जिस प्रकार नदी का जल-प्रवाह रहते हुए प्रतिक्षण उसका जल बदलता रहता है, उसी प्रकार जड़ और चेतन-जगत् भी प्रतिक्षण बदलता रहता है। बौद्ध-दर्शन में दीपक की उपमा से इस बात को समझाया गया है। जो दीपक संध्या-समय जलाया गया है, वह दीपक संपूर्ण रात्रि तक जलता रहता है- ऐसा हमको आभास होता रहता है, किन्तु वास्तविकता यह है कि प्रतिसमय जलने वाला तेल और बत्ती के कण तो भिन्न-भिन्न ही होते हैं। इस आधार पर बौद्ध-दार्शनिकों ने यह निर्णय लिया कि सत्ता मात्र परिवर्तनशील है। जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दो क्षणों तक एकरूप रहे। जगत् में उत्पाद और व्यय का क्रम चलता रहता है, स्थायित्व नाम की कोई वस्तु नहीं है। सब क्षणिक हैं- यही भगवान् बुद्ध के दर्शन का मूल मंतव्य है। बौद्ध-त्रिपिटकसाहित्य में इस क्षणिकवाद का विवरण विस्तार से मिलता है। त्रिपिटक में वर्णित इस क्षणिकवाद को ही बौद्ध-न्याय के तार्किक ग्रन्थों में भी आधारभूत बनाया गया है। तार्किक-दृष्टि से बौद्धदर्शन के क्षणिकवाद की व्याख्या इस प्रकार, की जाती है- जो वस्तु वर्तमान-क्षण में उत्पन्न होती है, वह आगामी क्षण में पूर्णतया नष्ट हो जाती है। उसके स्थान पर समान प्रतीत होने वाली अन्य वस्तु उत्पन्न हो जाती है, जिसे वे सन्तान कहते हैं। जिस वस्तु को हम वर्तमान-क्षण में प्रत्यक्ष कर रहे हैं, 114 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 730 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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