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________________ [ २२२ ] जयंति -- (यजन्ति) पूजा करते जीवियविप्पजढं- (जीवितवि प्रहीणम् ) जीवितरहित । जरचीर -- फटे हुए कपडे । जुजिए -(दे०) बुभुक्षित । जाएस्सति - ( याचिष्यते ) जूत्तिकरा - (युक्तिकराः) बुद्धिमांगेगा। मान् लोग। जातकम्मं -(जातकर्म) जन्म- जूवखलयाणि - (युतखलकानि) संस्कार [ देखो 'भ. म. नी चूत के स्थळ-जुए के अड़े। धर्मकथाओ' का कोश। जोइसियदेवा - (ज्योतिपिकजातिसरण - ( जातिस्मरणम् ) देवाः) सूर्य, चंद्र, तारे पूर्व जन्म का स्मरण । इत्यादि । जायं-(यागम् ) याग को जोएइ - (पश्यति ?) देखता है। पूजा को [ देखो 'भ. म. जोगमज-(योगमद्यम्) मूर्छित नी धर्मकथाओ' का कोश | करने के लिये उपयोग में लाया जानेवाला एक प्रकार जालघरएसु - ( जालगृहेषु ) का मद्य । · जाली लगे हुए घरों में। जोयणतरियं-(योजनान्तरिकम् ) जितसत्तू - देखो टि. ३६ ।। एक योजन का अंतरवाला। जिमियमुत्तु-(जिमितभुको त्तरागतानार) खा पी कर झामेइ-(दे०) जलाता है । आये हुए। [देखो झियायमाणसि] । जियारि-(जितारिः) अजित झियायति -(ध्यायति) ध्यान राजा फा दूसरा नाम । चितन करता है। जीवंतो-(मजीविष्यत् )जीता झियायमाणसि-देखो टि. १४, रहता। . क. १ । Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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