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________________ [ १९२ ] २१. समुप्पज्जित्था --" समुदपदिष्ट - उत्पन्न हुआ भूतकाल का यह आर्ष प्रयोग है। आचार्य हेमचंद्र ने तो भूतकाल में 'ईअ' 'सी' 'ही' और 'हीअ' के अतिरिक्त और प्रत्यय नहीं बताये हैं । परंतु आर्ष प्राकृत में भूतकाल सम्बन्धी ' इत्या' प्रत्ययवाले बहुत से क्रियापद आते हैं । पाली भाषा में भूतकाल में आत्मनेपद के तृतीयपुरुष के एकचचन में इत्थ प्रत्यय भी आता है, जैसे कि ' अभवित्य ' | संस्कृत भाषा में प्रत्येक आत्मनेपदी सेट् धातु से भूतकाळ में प्रायः इष्ट' प्रत्यय लगता है । इस तरह इत्य, इत्था, इष्ट इन तीनों प्रत्ययों में सादृश्य मालूम होता है । २२. हरिथराया उत्तम हाथी' । यहां पर जो उत्तम हाथी के लक्षण बताये गये हैं प्रायः वे संहिता के 'हस्तिलक्षण' प्रकरण में भी हैं । उक्त संहिता में हाथी की चार भद्र, मंद, मृग, और मिश्र । उनमें " - ' ही लक्षण वाराही ( अ. ६६ ) आतें ८ भद्र' जाति का होता है । , जाति सबसे Jain Education International 33 - " ८ २३. लिंडणियरं – “ लिंडे के समूह को - लीदको " । गूजराती भाषा में नासिका के मलका वाचक लींट' शब्द प्रसिद्ध है । । संस्कृत के 'लिष्ट' शब्द में से इसकी उत्पत्ति मालूम होती है । 'लिष्ट' शब्द के 'शू' का लोप कर देने से और 'ट' का 'ट' करके उसके पूर्व अनुस्वार लगा देने से ' लिंट' शब्द सहज ही हो जाता है - लिष्ट - लिट्ट-लिंट | उपर्युक्त लिंट से ही ' मल' अर्थ की सदृशता के कारण टू का द होकर 'लींड' शब्द बना हुआ मालूम होता है । लाद, For Private & Personal Use Only बताई है - - उत्तम हस्ती www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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