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________________ [१०१ ] सालिअक्खए गेण्हति, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमति, एगंतमवक्कमियाए इमेयासवे अज्झथिए समुप्पजेत्था - ___ "एवं खलु तायाणं कोटागारंसि बहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिटुंति, तं जया णं ममं ताओ इमें पंच सालअक्खए जाएस्सति, तया गं अहं पलंतराओ अन्ने पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि " त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ते पंच सालिअक्खए एगते एडेति, एडित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्या। एवं भोगवतीयाए वि, णवरं सा छोलेति, छोल्लित्ता अणुगिलति, अणुगिलित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया । एवं रक्खिया वि, नवरं गेहति, गेण्हित्ता इमेयारूवे अज्झथिए समुप्पजेत्या " एवं खलु ममं ताओ इमस्स मित्तनाति० चउण्ह सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरतो सहावेत्ता एवं वदासी—'तुम णं पुत्ता! मम हत्थाओं .... जाव पडिदिजाएजासि' ति कट मम हत्यंसि पंच सालिअक्खए दलयति, तं भवियवमेत्य कारणेणं " ति कुटुं एवं संपेहेति, संपेहित्ता ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वत्थे बंधइ, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवेइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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