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________________ ११ संग्रह का अंतिम प्रुफ ही मैं देख सका हूं और प्रथम के प्रुफ भाई गोपालदास जीवाभाई पटेल ने ' देखे हैं एतदर्श हमारे भाई गोपालदास धन्यवादाह हैं । प्राकृत कथायें पढ़ने के पहिले प्राकृत भाषा व व्याकरण का कुछ परिचय हो इस उद्देश से प्रारंभ में ही ' प्राकृत भाषा का साधारण परिचय' प्रकरण रक्खा गया है। उसमें प्रथम प्राकृत भाषा के स्वरूप का परिचय कराया है; जो लोक प्राकृत को संस्कृतयोनिक व संस्कृत को प्राकृतयोनिक बतलाते हैं उनके भ्रम को हटाने के लिए थोडीसी युक्तियां बतलाई है; जैन आर्पप्राकृत व बौद्धप्राकृत पाली स्पष्ट किया गया है; तद्भव तत्सम देश्य ये प्राकृत के तीन भेद के कारण को बताया गया है; आचार्य हंमचन्द्र ने प्राकृत की व्युत्पत्ति करते हुए " प्रकृतिः संस्कृतम्” इत्यादि जो उल्लेख किया है उनका भी खुलासा कर दिया गया है; पीछे स्वरव्यंजन के उच्चारणमेद, संधि तथा नाम व धातु के प्रचलित रूपाख्यान लिखे गये हैं । का पारस्परिक संबंध संग्रह में कोई त्रुटि हो तो आशा है कि अभ्यासी सूचित करेंगे ओर सह लेने की धीरता बतायेंगे । विनीत व उसके आगे की कक्षा द्वारा प्राकृत में प्रवेश करने के लिए यह पुस्तक सहायक होगी तो उत्तरोत्तर क्रमविकासगामी ऐसे और दो तीन संग्रह योजने का मनोरथ सफल हो सकेगा । अमरेली ( काठियावाड ) 2 महा वद १३, १९१ Jain Education International - बेचरदास दोशी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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