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________________ रा पहचानिये... मित्रयुगलको जगृही के मार्ग... और राजमार्गों पर मंद चहल-पहल शुरु हुइ । सूर्यनारायणकी सवारी आने में अब ज्यादा वक्त नहीं था । खेडूत... गो-पुच्छों को मरोड़ते खेतोंकी ओर दोड रहे थे । मस्तक पर घडा रखती हुई आ-जा करनेवाली पनिहारीयों की मंगल श्रेणि भी नयनगोचर हो रही थी। देवालयो, महालयो और राजमंदिर भी जनताके धीरे पगरवसे गुंज रहे थे । मंदिरो में घंटनादकी गुंजनाद गुंज रही थी। यही नगरीमें राजू और संजूका मित्र - युगल भी बसा था । दोनों मित्र आज प्रभातसे ही राजगृही नगर के सेरसपाटे पर निकल चुके थे। Jain Education International "राजु याने तत्त्वदर्शी" "संजु याने तत्त्वरसी” देखते ही रहीये जैसे गुरु-शिष्यकी जोड़ी...। राजु जैसे तत्त्ववेत्ता था, वैसे इतिहासका भी प्रखर विद्वान था । कहनेका मन हो जाता है कि राजगृह नगर याने प्राचीन और अर्वाचीन इतिहाससे पूर्णरूपेण भरा हुआ नगर .... राजुने जैसे अर्वाचीन इतिहास साक्षात् नजरोंसे देखा था वैसे प्रभु महावीरके समयका इतिहास भी दादाके पाससे कानोक सुना था । इनके दादाजी प्रभु महावीरके साक्षात् दर्शन पानेवाले बडभागी बने थे। इससे प्रभु महावीर के समयमें दादाजीने साक्षात् नजरोंसे देखी हुई हकीकतोंको भी वह अच्छी तरह जानता था । बहोत दिनोंसे संजू की यह ऐतिहासिक घटनास्थलोंको जानने-देखनेकी उत्कंठा आज पूर्ण होगी ऐसा लगता था । अभी तो मुंछके बाल आ रहे है ऐसे नवयुवान दोनों किशोर राजगृही के प्रथम द्वार की ओर प्रभातमें ही चल पड़े। 2 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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