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________________ मानव पर्न स्नान के समय अनेक प्रकारके वादित्र बजे, स्नान कराकर दिव्य वस्त्राभूषण पाए अर कुलवन्तनी राशियोंने अनेक मंगलाचरण कीए । रावणादि तीनों भाई देवकुमार सरे खे वरुओंका अति विनयकर चरणोंकी बन्दना करते भए तब बड़ोंने बहुत श्राशीदि दिये हे पुत्रो ! त बहुत काल जीवो र महा संपदा भोगो, तुम्हारीसी विद्या औरोंमें नहीं । सुमाली माल्यवान सूर्यरज रक्षरज अर र नवा इन्होंने स्नेहसे रावण कुम्भकरण विभीषणको उरसे लगाया । बहुरि समस्त भाई अर समस्त सेवक लोग भली विधिसों भोजन करते भए । रावणने बड़ों से बहुत सेवा करीअर सेवक लोगों का बहुत सन्मान किया, सत्रको वस्त्राभूत्रण दिये सुगली आदि सर्व ही गुरुजन फूल गये हैं नेत्र जिनके रवणसे अति प्रसन्न होय पूछते भए । 'हे पुत्रो ! तुम बहुत सुखसे हो, तत्र नमस्कार कर यह कहते भये - हे प्रभो ! हम आपके प्रसाद से सदा कुशल रूप हैं बहुरि बाबा माली की बात चली सो सुनाली शोकके भारसे मूर्छा खाय गिरा, तब रावण ने शीतोपचारसे सचेत किय अर समस्त शत्रुओंके समूह के वातरूप सामन्तताके वचन कहकर दादाको बहुत आनन्दरूप किया । सुमाला कमल नेत्र रावणको देखकर अति आनन्दरूप भए । सुमाली रावणको कहते भये - अहा पुत्र ! तेरा उदार पराक्रम जिसे देख देवता प्रसन्न होंय | अहो कांति तेरी सूर्य को जीतनेहारी, गंभीरता तेरो समुद्र अधिक, पराक्रम तेरा सर्व सम्म को उलंघे, अहो वत्स ! हमारे राक्षस कुलका तू तिलक प्रगः भया है जैसे जम्बूद्वीप का आभू पण सुमेरु है अर आकाशके आभूषण चांद सूर्य हैं, तले हे पुत्र रावण ! अब हमारे कुलातू मण्डन हैं । महा आश्चर्य की करगहारी चेटा तेरी, सकल मित्राकी थानद उपजावे है, जब तू प्रगट भवा तब हमको क्या चिंता है ? आगे अपने वंशम राजा मेघवाहन आदि बड़े २ राजा भये वे लंकापुरीका राज करके पुत्रों का राज देय मुनि होय मोज गरे अब हमारे पुण्यमे तू भया । सर्व राक्षसोंके कष्ट का हर बहारा शत्रु वर्गका जीतनेहारा तू महा साहसी हम एक मुखसे तेरी प्रशंसा कहांलों करें तेरे गुण देव भी न कह सकें। यह राक्षसवंशो विद्यावर जीवनकी आशा छोड़ बैठे हुवे सो अब सबकी आशा बंधी । तू महावीर भवा है । एक दिन हम कैलास पर्वत गये हुते वहां अवधिज्ञानी मुनि को हमने पूछा कि हे प्रभो ! लंका में हमारा प्रवेश होगा के नहीं ?" तब मुनिने कहा कि तुम्हारे पुत्र का पुत्र होयगा उसके प्रभावकर तुम्हारा लं धमें प्रवेश होयगा । वह पुरुषों में उत्तम होगा। तुम्हारा पुत्र रनश्रवा राजा व्योमविन्दुकी पुत्री केसीको परखेगा । उसकी कुक्षिमें यह पुरुषोत्तम प्रगट होल्गा सो भरत क्षेत्र के तीन खण्डका भोक्ता होगा | महा बलवान, विनयवान, जिसकी कीर्ति दशों दिशा में विस्, रेगी । वह वैरियोंसे अपना वास छुड़ावेगा अर वैरियोंके वास दावेगा सो इसमें आश्चर्य नहीं सो तू महा उत्सवरूप कुलका मण्डन प्रकटा हैं, तेरासा रूप जगत में घर किसीका नहीं, तू अपने अनुपमरू से सबके नेत्र अर मनको हरै है' इत्यादिक शुभ वचनोंसे सुमालीने रावण की स्तुति करी । तर रावण हाथ जोड़ नमस्कार कर सुमाली से कहता भया -- हे प्रभो ! तुम्हारे प्रसाद ऐसा ही होऊ । ऐसे वचन कहकर नमोकार मंत्र जप पंच परमेष्ठियोंको नमस्कार किया सिद्धोंका स्मरण किया, जिससे सर्व सिद्ध होय । Jain Education International For Private & Personal Use Only ७७ www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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